छह महीनों में 73 बम धमाके,सिर्फ़ वर्ष 2008 में 934 से ज्यादा लोगों कि बम धमाके में मौत। इराक, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के बाद भारतवासियों ने आतंकवाद की बेदी पर सबसे ज्यादा बली दी हैं। 9/11 के बाद अमरीका में और 7/7 के बाद ब्रिटेन में कोई आतंकवादी हमला नहीं हुआ। लकिन भारत में तो क्रम सा ही बनता जा राहा हैं। जयपुर,हैदराबाद,बंगलौर,मालेगांव,दिल्ली और अब असम। आतंकियों ने बार-बार अपने हौंसलों और भारत सरकार की नाकामी को उजागर किया।
हर बार कि तरह असम धमाके के बाद रेड अलर्ट जारी कर दिया गया। लेकिन आखिर इस रेड अलर्ट से देश की आंतरिक सुरक्षा को कितनी मदद मिली ? सरकार सिर्फ़ रेड अलर्ट जारी कर अपने कर्तव्य से फ़ारिग नही हो सकती। राजनिती ने आतंकवाद के खिलाफ़ युद्घ को सिर्फ़ कमजोर किया हैं। ये आतंकवाद के प्रति नरम रुख का ही असर है, कि बाकायदा समाचार चैनलों को सूचना देने के बाद धमाके को अंजाम दिया जा रहा हैं। बदले मे सरकार रेड अलर्ट जारी कर, बयानबाज़ी कर अपने कर्तव्यो को इतिश्री कह रही हैं। राजनीतिज्ञों ने अपने तुष्टिकरण कि निति से दों धर्मों के बीच एक नफ़रत की खाईं बना दी हैं, जिसे भरने खुद राम-रहीम को आना पड़े। नफ़रत की यही खाईं आतंकवाद को खाद मुहैया करती हैं। आतंकवाद रुपी सुरसा ने न तो मंदिरों को बख्शा है और न मस्जिदों को। मरने वाला मंदिर में आरती कर रहा हो या मस्जिद में नमाज़ कर रहा हो, आतंकवादियों पर कोई फ़र्क नही पड़ता।
शायद अब वक्त़ आ गया है कि सियासतदानों को रेड अलर्ट,चौकसी,बयानबाज़ी,मुआवजों और तुष्टिकरण की राजनीति से उपर उठकर अवाम को एक सुरक्षित माहौल मुहैया कराये। वक्त़ आ गया है, कि सियासतदान संविधान के समक्ष ली गयी अखणडता की शपथ को याद करे। देश के निति निर्धारकों में जो ईच्छाशक्ति की कमी है,उसे सुधारना होगा। हम हद से अधिक उदासीन और सहिष्णु हो गए हैं। अब इन्हें अलविदा कहने का वक्त़ आ गया हैं।
By: सुमीत के झा(sumit k jha)
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