करीब एक साल पहले, भारतीय क्रिकेट टीम से सौरव गांगुली को बेआबरू कर निकाला गया था। किसी ने नहीं सोचा था, भारतीय क्रिकेट टीम को जितना सिखाने वाला बंगाल का यह शेर कभी शान से नीली टोपी पहन पायेगा। लेकिन शायद आम और खास में यहीं एक अंतर होता हैं। दादा ने वापसी की, और शान से वापसी की। हमेशा बल्ले के साथ-साथ जुबान का इस्तेमाल करने वाले ने इस बार सिर्फ़ बल्ले को चुना। आलोचकों को जवाब मिला नये बनते रिकार्डों से।
न्यूजीलैंड के महान ऑलराउंडर रिचर्ड हैडली ने कहा था, कि चयनकर्त्ताओं के फ़ैसले से पहले किसी भी खिलाड़ी को अपनी सम्मानजक विदाई का फैसला कर लेना चाहिए। और दादा ने भी बेंगलुरु में एक संवाददाता सम्मेलन में बिल्कुल अचानक घोषणा की ऑस्ट्रेलिया सीरिज़ उनकी आखिरी सीरिज़ होगी। महाराजा ने अपने क्रिकेट सफ़र का आगाज 1992 में इंग्लैंड के खिलाफ़ लॉर्ड्स में शतक के साथ किया था। और यह सफ़र सात देशों के खिलाफ टेस्ट शतक के साथ अंजाम पाया। ऑस्ट्रेलिया को भारत में और पाकिस्तान को उसी के घर में 50 साल बाद हराना दादा ने ही मुमिकन बनाया। सौरव गांगुली ने कप्तान के तौर पर टीम में आक्रामकता और लड़ने की भावना जगायी। लॉर्ड्स के बालकोनी से टी-शर्ट हवा मे लहराना कौन भुल सकता हैं।
प्रिंस ऑफ़ कोलकाता ने अपने टेस्ट जीवन का समापन 113 टेस्टों में 7212 रन के साथ किया जिनमें 16 शतक और 35 अर्धशतक शामिल है। देश के सफलतम कप्तान गांगुली ने 49 टेस्टों में भारत का नेतृत्व किया और 21 मैच जीते।
दादा आपको शुक्रिया "भारतीय क्रिकेट टीम" को "टीम इंडिया" बनाने के लिये। जब भी आक्रामकता की बात आयेगी, दादा आप बहुत याद आयोगे। ऑफ साइड का वह शाट्स शायद अब देखने को नही मिलेगा। दादा, जिस खामोशी से क्रिकेट को अलविदा कह रहे हो, उसी खामोशी से इसे भुल मत जाना।
अलविदा दादा !!!
By: सुमीत के झा (Sumit k Jha)
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