लोकतंत्र पर हमला और कितना शर्मशार होगा अपना देश..................
कितना कड़वा सच है, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर, चंद मुठ्ठी भर लोग, जब चाहें बता-बता कर उसकी मर्यादा का मानमर्दन करें, लोगो के खून से होली खेले और ऐसे खूनी भेड़ियों की गर्दन सिर्फ हम इसलिए बचाएं क्योंकि जम्मू-कश्मीर में सत्ता को नुकसान हो जाएगा, कुछ को बिहार में, कुछ को यू.पी. में और कुछ को लोकसभा के चुनावों में. इसलिए अफज़ल जैसे मौत के सौदागर को फांसी नहीं देना है, बाटला हाउस के लिए सुरक्षा बलों को चीख-चीख कर बदनाम करना है, सिम्मी की वकालत करना है और सेना के कर्तव्यनिष्ठ अफसरों को एक नार्को टेस्ट की आड़ में पूरी सेना को कटघरे में खड़ा करना आदि-आदि की परिणिती क्या है? कराहती मुंबई है, इसका जवाब. कहाँ है मुलायम? कहाँ हैं लालू? मुंबई वाले आज पूछ रहें हैं? ये मौत के सौदागर क्या सिर्फ 26 नवंबर 2008 को मुंबई आए और उन्हे पूरी मुंबई की पहचान हो गयी ? इस पहचान में मदद करता है, सिम्मी, ये बात देश की ख़ुफ़िया एजेन्सी के प्रमुख कहते हैं. जब इनकी बात पर गौर नही करोगे तो देश को, गृह मंत्री ये बताकर क्या साबित करना चाहते हैं कि आतंकवादियों के पास जैविक और रासायनिक हथियार भी हैं. जनाब, आप देश को ये बताएँ कि इस देश में कबसे आतंकवादी हमले में अब और कोई बेगुनाह की जान नहीं जाएगी .क्या आपमें वो हिम्मत जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपने देश के लोगो को 11 सितंबर के हमले के बाद आश्वस्त किया था कि वो अब अमेरिका पर और कोई आतंकवादी हमला नहीं होने देंगे. उन्होने जो कहा वो कर के दिखाया. क्या आप ऐसा कर पाएंगे? एक रेल दुर्घटना पर मंत्री पद से इस्तीफ़ा देने वाले लालबहादुर शास्त्री क्या अब सत्ता के आदर्श प्रतिबिंब नही रहे ?
जयपुर, अहमदाबाद, बंगलोर, दिल्ली और अब मुंबई. वो मुंबई जिस पर पिछले एक साल से हमले की बात आतंकवादी कर रहे थे, आखिरकार वो इस पर अमल करने में कैसे कामयाब रहे? मुंबई ही नहीं पूरा देश इसको जानना चाहता है. देश जानना चाहता है कि आतंकवादियों के इतने हमलों के बाद भी क्या हम हमलों को अंजाम देने वालों को नही पहचान पाए? इन हमलों में देश के भीतर और बाहर किन-किन का हाथ है ? इन हाथो पर अब तक प्रहार नही किया गया है तो कब तक किया जाएगा ? ये नही कर पाए हो तो लोगो क़ी सुरक्षा क़ी गारंटी कौन देगा? देश क़ी इज्जत मट्टी पलित हो रही है पूरी दुनिया में. यहाँ तक कि इंग्लेंड की क्रिकेट टीम भारत का दौरा रद्द कर स्वदेश लौटना चाहती है, क्या अब भी कोई शर्मशार होने वाली घटना का इंतजार किया जा रहा है ? आतंकवाद रोकने वाले कानून पोटा को धर्म विशेष के लोगो से जोड़ कर, क्या देश को गर्त में धकेलना ठीक है ? कठोर कानून आतंकवादियों के लिए है तो फिर ये किसी धर्म विशेष \के खिलाफ कैसे हो गया? मान लिया जाय है भी, तो क्या देश से बड़ा धर्म है? देश की रक्षा के लिए तो हमारे देवी- देवताओं ने भी अस्त्र-शस्त्र उठाए हैं, और दुष्टों का दमन किया है. आज के इन दुष्टों पर आप काबू नही पा सकते तो फिर आम आदमी जानना चाहता है कि आप सत्ता में क्यों रहे? आखिर आम आदमी ने ही तो अपनी सरकार बनाकर आपको देश की और अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी है? जब ये दोनो आपके हाथों सुरक्षित नही तो आप उसकी {आम आदमी} सत्ता पर काबिज नही रह सकते. मुंबई का दर्द बड़ा पीड़ा दायक है. आप बैठके न करे, जनता समाधान चाहती है. सता के लिए आतंकवाद पर नर्म नहीं आरपार की इच्छा शक्ति शब्दों में नहीं धरातल पर नजर आनी चाहिए. अब तुष्टिकरण नहीं जनता की सुरक्षा की पुष्टि कीजिए, वरना जनता की सत्ता छोड़ दीजिए.
मानवता के दरिंदों के हमलों में मुंबई में हताहत हुतात्माओं को विनम्र श्रद्धांजलि ..................................
hamla ka kya matlab hota hai jan na chahate hai to jaiye
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