आतंकवाद के खिलाफ पकिस्तान का कुछ दिन पूर्व आया बयान काफी सराहनीय था। अंतर्राष्ट्रीय दबावों के चलते उसने लश्कर के एक संगठन जमात उद दावा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। साथ ही इसके दफ्तरों को सील कर दावा प्रमुख मौलाना अब्दुल अज़ीज़ अल्वी को नज़रबंद भी कर दिया था। पाकिस्तान ने जमात के चार आतंकियों को भी गिरफ्तार कर अपनी आतंक के खिलाफ सहयोग करने का दिखावा कर दिया। लेकिन पाकिस्तान की इस कार्रवाई को शुरू से ही संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा था। अब सोमवार को पकिस्तान ने न सिर्फ़ दावा प्रमुख अब्दुल अज़ीज़ की नज़रबंदी हटा दी बल्कि गिरफ्तार किए चार आतंकियों को भी रिहा कर दिया है। इससे पकिस्तान के मनसूबे साफ़ हो गए हैं। उसने यह साबित कर दिया कि दुनियाभर में आतंकवादियों और आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा और प्रोत्साहन देने में पाकिस्तान भी सहयोग कर रहा है। परसों ही पाकिस्तानी संसद में पाक प्रधानमंत्री का यह बयान कि वे अंतर्राष्ट्रीय दबावों में आकर कोई कदम नहीं उठाएंगे। साथ ही भारत के किसी भी कार्रवाई का मुँहतोड़ जवाब दिया जाएगा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का इतना गैर जिम्मेदाराना बयान हो सकता है कि विपक्ष को शांत करने के लिए दिया गया हो, लेकिन यह बयान न सिर्फ़ दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा सकता है, बल्कि आतंक के विरुद्ध पाकिस्तान कि कटिबद्धता पर भी सवाल खड़े करता है। इन सभी बातों पर और पाकिस्तान के आतंक के प्रति रवैये से स्पष्ट हो गया है कि सांप को अब ज्यादा दिन तक पालना ठीक नहीं है। इसके पहले कि वह देश दुनिया में अपना ज़हर फैलाये, उसे कुचलकर मार डालना चाहिए।
वैसे भारत के सामने पकिस्तान ही एक खतरा नहीं है, बल्कि कई पश्चिमी देश भी हिन्दुस्तान कि प्रगति में बाधक बने हैं। ये देश चाहते ही नहीं कि भारत-पाक के बीच तनाव कम हो और एशिया में शान्ति व्याप्त हो, क्योंकि इससे इस क्षेत्र में विकास तेजी से होगा और भारत और चीन को महाशक्ति बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। इसीलिए अभी भारत को हर मुद्दे पर फूँक-फूँक कर कदम रखने कि ज़रूरत है और आतंक के ख़िलाफ़ स्वयं ही कड़े कदम उठाने कि आवश्यकता है।
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