23.1.09

मैं और कल्याण सिंह 1997 में


बात सन 1997 की है। मैं उस समय अयोध्या में था और महाराजा इंटर कालेज में दसवीं का छात्र था। क्योंकि 1996 में मैं 10 वीं में फेल हो गया था इसीलिए मुझे दोबारा उस कक्षा में पढ़ना पड़ रहा था। सुबह नौ बजे मैं अपने घर(किराए के मकान) से वासुदेव घाट से स्कूल के लिए निकला। अचानक रास्ते में मैंने बहुत बड़ी गाçड़यों का काफिला देखा तो ठहर गया और एक रिक्शे वाले से पूछा भैया यह क्या हो रहा है? उसने जवाब दिया अरे कल्याण सिंह आए हैं उत्तर प्रदेश के मुयमंत्री मैंने कहा अच्छा। पुलिस का हर ओर जमावड़ा था मेरे हाथ में सिर्फ दो किताबें थीं क्योंकि उस दिन कुछ खास था जो कि मुझे याद नहीं आ रहा है। इसलिए मैं ज्यादा किताब नहीं ले जा रहा था। मैं मणिराम छावनी यानी की छोटी छावनी में ही रुक गया। और जिस तरफ नेता और पुलिस वाले जा रहे थे उन्हीं के भीड़ में मैं भी चलता रहा। हालांकि उस टोली में किसी को जाने नहीं दिया जा रहा था पर मुझे किसी ने मना नहीं किया क्योंकि उनकी नजर मुझपर नहीं पड़ी। बाल्मीकि मंदिर परिसर के दाहिने हाथ पर हनुमान जी का मंदिर उस समय नया-नया बना था कल्याण सिंह को उसी में जाना था। वहां कुछ पूजा अर्चना करनी थी बाबा रामचंद्र दास परमहंस और नृत्य गोपाल दास केसाथ-साथ अयोध्या केसभी बड़े संत उपस्थित थे। हर कोई कल्याण सिंह के गुणगान में लगे थे। मैं जैसे मंदिर की सीढ़ियों पर पहुंचा विनय कटियार केसाथ-साथ वहां के बाबाओं ने मुझे धक्का देना शुरू कर दिया क्योंकि अंदर मिठाई बंट रही थी और हर नेता एक मिठाई डिŽबा प्रसाद स्वरूप झटकने में लगा था। मैं यह मौका कैसे गंवाता मैंने देखा कि विनय कटियार किसी से बात करने में लगे हैं तो मैंने बाबा को बोल दिया मैं विनय चाचा केसाथ आया हूं। बस क्या था बाबा जी ने मुझे ना सिर्फ खूब मिठाई बल्कि अंदर ले जाकर आराम से बिठा दिया जहां मैंने कल्याण सिंह केसाथ पेट भरकर मिठाई खाई और उनसे भाजपा की ना जाने कितनी अच्छाइयां सुनीं। पूरे भाषण केदौरान आडवाणी अटल हर कोई उनकेलिए आदर्श बना हुआ था। उस कल्याण को देखकर जब आज उनके पार्टी छोड़ने के फैसले को देखा तो पता चला कि इंसान कितना स्वार्थी होता है। यह तो पार्टी की बाद थी वह तो अपने फायदे के लिए परिवार तक को नहीं छोड़ता। अब मैं आप पर छोड़ता हूं कि ऐसे नेता जो अपने पुत्र-पौत्र के लिए मरे जा रहे हैं वह आपका या फिर देश का क्या कल्याण करेंगे? मैं किसी पार्टी का नहीं हूं पर एकता देखना मुझे पसंद है कम से कम अपनी पार्टी में तो जमे रहो नेताओं। नहीं तो तुम पर कौन भरोसा करेगा।

6 comments:

  1. अमित जी,
    जाहिर है कि इंसान स्वार्थी तो होता ही है... यदि आप एक फकत मिठाई के डिब्बे के लि्ए किसी को अपना चाचा घोषित कर सकते हैं तो फिर खून के रिश्तों को निभाने में किसी को क्या लाज आएगी....।

    नेताओं को गरियाने से इस पोस्ट का नाम यानि भडास भले सार्थक हो जाए लेकिन समस्या का हल नही निकलेगा....। दरअसल ये बड़ा मुश्किलों का दौर है... ये वक्त समस्या को गिनाने या फिर सवाल खड़े करने या राजनेताओं को गरियाने का हर्गिज नही है... बल्कि ये सवालों, समस्याओं के जवाब तलाशने का समय है... कम से कम आपकी उम्र और पेशे का तो यही तकाजा है....।
    शुभकामनाएं....।।।।

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  2. बढ़िया है दोस्त लिखते रहें अभी तो मैं आपकी तारीफ ही कर देता हूँ क्योंकि ऐपकी मेमोरी और उस समय की समझ अच्छी लगी.....

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  3. kalyaan ho ya shekhawat sabko utradhikar ki chinta ne party se daga karne par majboor kiya .......
    taras aata hai in sattalolup netaon par ........
    chunaw nikat hi hai janta agar samajh payi to inka haal bhi ati mahtwakanksha ki shikar umabharti ki tarah hi hoga .......

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  4. मैं जयंत जी की बातों से सहमत हूं । इंसान स्वार्थी होता है । अकेले नेताओं को गरियाने से कुछ नहीं होने वाला । क्या चौथे स्तंभ के लोग पाला नहीं बदलते । यह इंसानी फितरत में है । हम संस्थान क्यों बदलते हैं । कुछ लोगों को जवाब होगा एडजस्ट नहीं हो रहा था । लेकिन कहीं न कहीं लालच होती है । ज्यादा पैसा मिलने की ? यह ठीक भी है, लोग सकून के साथ जीविका के लिए काम करते हैं । होना भी यही चाहिए । आज के जमाने में किसी भी जाति - धमॆ, संस्थान और लोगों पर कोई सिद्धांत नहीं लागू होता । सैद्धांतिक बातें किताबी हो गई हैं ।

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  5. Dear Amit,
    Maine Kalyan singh se sambandhit apka matter dekha. Ayodhya & Maharaja inter col. ki bat ne mujhme apse sampark ki utsukta jgai. darasal main ayodhya ka mool nivasi hoon & maharaja inter col. se study ki hai. iss samay dainik bhaskar me hoon. aap kis jagah ke rahne wale hai?
    madhurendrasrivastav@yahoo.com
    Mo. 09896422575

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