ना रोवेके बा, ना गावेके बा, आ मालामाल हो जायेके बा
दिसम्बर के शुरु में के0आर0 विद्यालय के समीप स्थित प्रसिद्ध समाजसेवी संगठन रीड के प्रांगण में कारितास इन्डिया द्वारा समर्थित तथा फादर प्रकाश लुईस के नेतृत्व में संचालित ‘बिहार पंचायत नवनिर्माण अभियान’ द्वारा ‘‘नरेगा’’ कार्यक्रम पर एक भव्य कार्यशाला का आयोजन हुआ था। इसमें बिहार सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के प्रधान सचिव, अनूप मुखर्जी कार्यक्रम के बावजूद आने में असफल रहे। आखिर बड़े लोग बेतिया जैसे छोटे स्थान पर कैसे आते। उन्हें तो नरेगा की स्थिति विडियो कानफ्रेन्सिग तथा जिला प्रशासन द्वारा प्रेसित सुसज्जित रिपोर्टो से तो पता ही रहता है कि सबकुछ बमबम है, तो फिर अनपढ़, गंवार पंचायत प्रतिनिध्यिों तथा देहाती सामाजिक कार्यकर्ताओं से मिलकर उनके मुखार विन्दु से नरेगा की ‘ दुर्गति ’ सुनने की क्या आवश्यकता....?
खैर जिला पदाधिकारी दिलीप कुमार, जिला परिषद अध्यक्ष रेणू देवी, डी0डी0सी0 अरुण कुमार तथा कुछ प्रखंड विकास पदाधिकारी जैसे कुमार मंगलम, विजय पाण्डे, प्रमोद कुमार, मनोज रजक आदि जरुर कार्यशाला में उपस्थित हेाकर इकठ्ठे लोगों को अनुगृहीत किये। परन्तु जिला पदाधिकारी के प्रवचन समाप्त होते तथा कार्य व्यस्तता के कारण उनके विदा लेते ही,अन्य सभी पदाधिकारी भी अन्र्तध्यान हो गये। परन्तु कार्यक्रम के आयोजक तथा रीड के निदेशक फादर जोश, कुछ समाजसेवी, प्रो0 आर0के0 चौधरी, प्रो0 प्रकाश, सिस्टर ऐलिस, अब्बास अंसारी, पंकज, सिकंदर और पंचायत प्रतिनिधी आदि समापन तक डटे रहे।
कार्यशाला के दौरान जो भी चर्चायें हुई। उससे तो जिला में जारी ‘नरेगा’ का पोल तो खुल ही गया। नरेगा का बुनियादी लक्ष्य है ‘‘रोजगार के अवसर पैदा किए जाये ताकि हरेक परिवार को सुरक्षित और अच्छे जीवन यापन का अवसर मिल सके।’’ यह निःसंदेह हो भी रहा है। आखिर मुखिया, वार्ड सदस्य, प्रखंड तथा जिला स्तरीय पंचायत प्रतिनिध् भी तो इस क्षेत्र के ही पविारों से आते हैं, जिनको सशक्त करना भी तो सरकार का ही धर्म है। ये बेचारे गरीब, कमजोर होने के साथ-साथ अपने गावों से अत्यन्त अधिक लगाव भी रखते हैं। यही कारण है कि ये अन्य लोगों के तरह पंजाब, गुजरात, असम या महाराष्ट्र कमाने के लिए नहीं गये। आखिर ’नरेगा’ नहीं आता तो इन बेचारे बिहार प्रेमियों का हर्ष क्या होता, इनका पेट तथा जेब कैसे भरता। हास्य कवि ‘भकुआ’ तथा वर्तमान पंचायती राज व्यवस्था के पूर्व मुखिया रहे बाल्मीकिनगर निवासी प्रमोद कुमार सिंह ‘नरेगा’ का बडा़ ही सारगर्वित अर्थ बताते है। यह बेचारे पंचायत प्रतिनिधियों तथा उनके शुभेक्षुओं को मालामाल करने हेतु ही मौलिक अधिकार के रुप में अवतरित हुआ है। सामान्यतः नरेगा प्रत्येक ग्रामिण परिवार को रोजगार की गारन्टी देता है। यह प्रत्येक परिवार का मौलिक हक है कि उसे बीना किसी की याचना किये रोजी रोटी कमाने का अवसर मिले। श्री सिंह कहते है कि ये जनप्रतिनिधी भी तो ऐसा ही हक रखते हैं। अतः वे नरेगा की बहती अकूत धनराशि जलधरा में डूबकी लगा लेते हैं, तो क्या पाप करते हैं?
वैसे प्राप्त आकड़ों के अनुसार प0 चम्पारण में लगभग चार लाख लोगों को विगत कुछ वर्षेां में नरेगा के तहत रोजगार कार्ड उपलब्ध् कराया गया है। तथा उन्हें रोजगार देने हेतु 75 करोड़ से ज्यादा मुहैया कराये जाने की सूचना है। जिला पदाधिकारी के दावे के अनुसार तो 2,50,000 मजदूरों का बैंको तथा पोस्ट आपिफसों में खातें भी खुल गये हैं। भले ही यह अलग बात है कि इनके खातों में नरेगा की राशि जा रही है या नहीं।
परन्तु प्रश्न उठता है कि क्या इतने सारे मजदूर वास्तव में नरेगा कार्यक्रम से लाभान्वित हुए हैं? अगर नहीं तो रोजगार कार्ड देने का क्या मायने है? जानकार बताते हैं कि जिले में करीब 315 पंचायतों से करीब 2 लाख मजदूर अन्य प्रदेशों में जीवन यापन के संघर्ष में लगे हैं। बाकी डेढ़-दो लाख मजदूरी करने योग्य तथा मजदूरी करने के इच्छुक लोग भी अन्य कई प्रकार के जिले में चल रही करीब 1000 करोड़ की योजनाओं-परियोजनाओं में संलग्न हैं, तो फिर इतने मजदूर कहां से टपक पड़े हैं जिन्हें नरेगा का शरण लेना पड़ा हैं। इसका स्पष्ट अर्थ है कि नरेगा कार्यक्रम मात्र कागज-कलम तथा आकड़ा प्रबंधन का खेल बन कर रह गया है। डी0एम0 दिलीप कुमार ने भी रीड में आयोजित कार्यशाला में स्वीकारा था कि नरेगा में गड़बड़ियां हो रही हैं, परन्तु उन पर प्रशासन की कड़ी निगाहे हैं तथा धमकी भी दी थी कि अगर जिम्मेवार पदाधिकारी तथा प्रतिनिधी अपने में सुधार नहीं लायेगे तो उन्हें पर कानूनी कार्यवाही भोगने होंगे।
पर जानकारों का दावा है कि दिलीप कुमार जी की ऐसी धमकियों को नरेगा के संचालन में जुटे पदाधिकारी तथा जनप्रतिनिधी मात्र बनर घुड़की ही समझते हैं और इसे उनका विध्वा विलाप मानकर एक कान से सुनते हैं तथा दुसरे कान से निकाल देते हैं। आखिर बेचारे जिला पदाधिकारी कर भी कुछ नहीं सकते, एक दो एफ0आइ0आर0 करने के अतिरिक्त, जिसका हश्र सभी जानते हैं। डी0एम0 साहब कहां-कहां लूट को रोक पाये हैं या पायेंगे। उनके अधीन तो पूरे जिले में कम से कम 10 अरब रुपयों की विभिन्न जन कल्याणकारी योजनायें गरीबों, दलितों, पिछड़ों तथा किसानों के लाभ के लिए चलायी जा रही है। और कहां नहीं लूट का चक्र चल रहा है? परन्तु क्या जिला पदाधिकारी के सुदर्शन चक्र में दम है कि वे इस विभत्स लूट को रोक सके...?
वैसे भी बेचारे तीन स्तरीय पंचायत व्यवस्था में जीते करीब तीन चार हजार जन प्रतिनिधी भी तो काफी हद तक मजदूर ही श्रेणी के लोग हैं और चुनाव जीतने में काफी कुछ गंवाये भी हैं। अतः सरकार का धर्म है कि इन जैसे त्यागी मजदूरों को भी मजबूरी की बैतरणी पार करने तथा सुखमय जीवन व्यतीत करने में यथोचित सहायता करे। एक प्रकार से नरेगा इन जन प्रतिनिध्यिों को गरीबी के प्रहार से मुक्ति के लिए कवच-कुंडल बना हुआ है। जानकार सूत्रों के अनुसार करीब अभी तक 75 करोड़ आवंटित रुपयों में से मात्रा 25 करोड़ रुपयें ही नरेगा योजनाओं पर सही ढंग से खर्च हो पायेगे, बाकी 50 करोड़ तो जन प्रतिनिधियों, उनके संरक्षक पदाधिकारी एवं अन्य सफेदपोशों के ही जेब गरम करेंगे। आखिर ज्यादातर मिट्टी कार्य संपादित हो रहे हैं तथा इनमें कितने मजदूर लगे, पता लगाना काफी कठिन कार्य है। खास करके जब किसी भी संबंधित व्यक्ति की नीयत ठीक न हो।
हास्य कवि सिंह भी ठीक ही कहते है कि नरेगा वास्तव में पंचायत प्रतिनिधियों जैसे मजदूरों का अधिकार है। इसके लिए उन्हें किसी की कृपा पर नहीं जीना है। इसकी राशि स्वयं उनके जेबों में पहुंच जाती है और वे मस्त होकर गुनगुना उठते है ‘‘नरेगा भी अदभूत बा, ना रोवेके बा, ना गावेके बा, आ मालामाल हो जायेके बा।’’
अगर पूरे बिहार के नरेगा मानचित्र का अवलोकन किया जाय तो पता चलता है कि विगत वर्षो में करीब 20 अरब रुपया इस प्रदेश को भारत सरकार ने भेजा है जिसमें अबतक 12 अरब रुपये विभिन्न योजनाओं पर खर्च कर दिये गये हैं। अगर चारो ओर प0 चम्पारण के सदृश्य ही नरेगा धन राशि का सदुपयोग हुआ होगा तो अन्दाजा लगाया जा सकता है कि करीब 7-8 अरब रुपयें तो बेचारे पंचायत प्रतिनिधियों तथा उनके संरक्षकों को सशक्त बनाने में अवश्य चला गया होगा। आखिर इस लूट को कौन रोक सकता है...? क्या बेचारे पंचायत प्रतिनिधी इतने कमजोर हैं जो डी0एम0 दिलीप कुमार उनपर दांत पीस रहे है...? पर ऐसी बात नहीं है, इनको छूना आसान नहीं है। आखिर इनके साथ नरेगा गंगा में राज्य सत्ता के शीर्ष लोग भी तो किसी न किसी बहाने नहा रहे हैं। इसके पीछे लूटेरों का एक विशाल गठबंधन सक्रिय है। इसकी निष्पक्ष जांच अगर संयुक्त राष्ट्र के किसी विशिष्ट शक्तिशाली दल से करायी जाय, तो संभव है कि कही इस पर से पर्दा उठ जाय। अन्यथा इस पर अंकुश लगाने का प्रयास पहाड़ से सर टकराना है। अन्ततोगत्वा सर ही फूटेगा।
वह क्या बात है क्या बात कही है स्वयम्भू मीडिया ठेकेदारों के लिए सचमुच में आप ही मीडिया के बाप है .
ReplyDeleteदैनिक भास्कर की संवेदनशीलता?
ReplyDeleteवह क्या बात है क्या बात कही है स्वयम्भू मीडिया ठेकेदारों के लिए सचमुच में आप ही मीडिया के बाप है .