लोकल अखबार की भी अपनी आन बान शान होती है यह श्री कमल नागपाल से पहले शायद ही कोई सोच पाया। हो सकता है ये लाइन कई लोगों के हजम ही ना हो कि लोकल अखबार जन जन में लोकप्रिय बनाने की शुरुआत उन्होंने ही की। ना जाने कितने ही पत्रकार उन्होंने अपने सानिध्य में निखारे। सम्भव है बड़े बड़े अखबारों में नौकरी करने वाले ये पत्रकार किसी के सामने इस बात को ना स्वीकारें लेकिन मन ही मन में वे जरुर कमल जी को थैंक्स कहतें ही होंगें। बेशक उन्होंने मुझे हाथ पकड़ कर पत्रकारिता के सबक नहीं सिखाये मगर मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मैंने उनके संस्थान में काम करते करते जितनी मेरे में बुद्धि और शक्ति थी लेखन में सुधार जरुर किया। कम से कम शब्दों में शानदार,जानदार पठनीय ख़बर लिखने में वे मास्टर थे। श्री नागपाल कम्प्लीट पत्रकार ही नहीं एक जिंदादिल,हरफन मौला इंसान थे। इस पोस्ट के साथ जो विडियो है वह ३१ दिसम्बर २००६ का है। तब वे ऐसी बीमारी से जिंदगी की आखिरी लडाई लड़ रहे थे जिसका कोई नाम तक लेना नहीं चाहता। श्री कमल जी लड़े तो बहुत परन्तु जीत उस मौत की ही हुई जो जगत में एक मात्र सत्य है। एक साल पहले १५ जनवरी २००८ को उनका निधन हो गया। यह पोस्ट उनको विनम्र नमन करने का प्रयास है।
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