हमने पसीना बोया तो बंजर चमन हुआ,
धरती का स्याह कोना भी उजला चमन हुआ।
मेहनत करी जो तूने ख़ुद हड्डी निचोड़ के,
महकी हुई फसल सा ये तेरा बदन हुआ।
धरती चुरा के फ्लैट तो हमने बना लिए,
खेती उजाड़ने का ये कैसा जतन हुआ।
करते किसान खुदकुशी कर्ज़े में डूब कर,
क्यूँ यारो ख़स्ता हाल ये मेरा वतन हुआ।
हँसते हुए खलिहान फ़सलों से ये कहा,
मकबूल मंदिरों में ये श्रम का हवन हुआ।
मकबूल
No comments:
Post a Comment