13.1.09

मुंबई हमले और पाक-भारत मीडिया जंग

मोहम्मद हनीफ़

पिछले दिनों जब भारत और पाकिस्तान के टेलीविज़न चैनल जंगी तराने बजा रहे थे तो मैंने भी एक बेवक़्त की रागनी अलापने की कोशिश की। पहले दिल्ली में फिर कराची में।

आम तौर पर टी.वी. कैमरा देखते ही मुझ पर कपकपी तारी हो जाती है तो फिर ऐसा क्या हुआ कि दो दिनों मैं सरहद के दोनों तरफ़ के करंट अफेयर शोज़ में पाया गया।

टेलीविज़न पर मुंबई हमलों की लाईव कवरेज देखते हुए मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कहीं पे कोई भयानक ग़लती हो रही है।अभी ताज होटल के गुंबद में लगी आग नहीं बुझी थी, अभी होटलों के अन्दर फंसे हुए लोगों को यह पता नहीं था कि वह ज़िंदा निकल पाएंगे या नहीं, लेकिन हिन्दुस्तानी टी.वी. के मेज़बान पाकिस्तानी नक़्शे पर वह शहर दिखा रहे थे जहां हिन्दुस्तान को बमबारी करनी चाहिए, और पाकिस्तानी टी.वी. चैनलों वाले नक़्शे बना कर यह बता रहे थे कि पाकिस्तान से तो कभी ऐसा काम न हुआ है न हो सकता है।

मैंने अपनी खुदी को बुलंद होते पाया और सोचने लगा कि शायद मैं कोई अक़्ल की बात कर सकता हूं।

मैं दिल्ली में था एक अंग्रेज़ी टी.वी. चैनल से फ़ोन आया कि मुंबई हमलों के परिपेक्ष्य में भारत- पाकिस्तान संबंध पर बात करनी है तो मैं अमन व अमान की बातें सोचता स्टुडियो पहुंच गया। प्रोड्यूसर ने मुझे प्रोग्राम का असली विषय बताया: क्या भारत को पाकिस्तान के अन्दर टारगेट्स पर हमला करना चाहिए।

मैंने प्रोड्यूसर से बाहर जाकर सिगरेट पीने की इजाज़त चाही। पहले सोचा भाग जाऊं। पर सोचा शक्ल से पाकिस्तानी लगता हूं,क्या पता पकड़ा जाऊं।

प्रोग्राम के शुरू में एस.एम.एस. के ज़रिए दर्शकों से यही सवाल पूछा जा रहा था। 90 फ़ीसद कह रहे थे कि भारत को यह हमले फ़ौरन कर देनी चाहिए। जब तक प्रोग्राम खत्म हुआ तो उन की संख्या बढ कर 91 फ़ीसद हो चुकी थी।

एक मौक़े पर मैंने झल्ला कर कहा कि किसी ज़माने में पाकिस्तानी हिन्दुस्तान को दुश्मन समझते होंगे, लेकिन आज-कल हमारे अपने समस्याएं इतने गंभीर हैं कि कोई हिन्दुस्तान के बारे में नहीं सोचता। मैंने यह बात चंद मिसाले दे कर स्पष्ट करने की कोशिश की लेकिन तब तक मेज़बान मुझे काट कर एक रीटायर्ड इंडियन जनरल के पास जा चुके थे,जिसके पास पाकिस्तानी आतंकियों को तबाह व बर्बाद करने का एक चार सुत्रीय प्रोग्राम तैयार था।

वापसी पर मैंने भारतीय टैक्सी ड्राइवर से पूछा कि क्या हिंदुस्तान को पाकिस्तान पर हमला करना चाहिए। वह समझा कि मैं शायद एक बेहुदा मज़ाक़ कर रहा हूं। कहने लगा कि अभी तो यह ही नहीं पता कि यह सब किया किसने है।आपके लोगों ने किया है या हमारे लोगों ने।

एक और सवाल के उत्तर में मैंने अर्ज़ किया कि हिन्दुस्तान में एक ऐसी मिडल क्लास है जो एक नवदौलतिया सुपर पावर की तरह डरोन ख़रीदना चाहती है फिर उनसे हमले करना चाहती है। यह बात स्पष्ट है कि पसन्द की गई। इस का असर दुगुना करने के लिए मैंने अमन पसन्दों का पुरानी चाल का प्रयोग किया कि कराची और दिल्ली की सड़कों पर पाँच साल की उम्र के बच्चे भीख़ मांगते हैं उनका भी सोचें। इस वक़्त तक मेरा टाईम खत्म हो चुका था।

बाद में ख़्याल आया कि टी.वी. पर बोलने और लिखने में शायद एक बुनयादी फ़र्क है। आप कागज पर लिखते हुए या कम्प्यूटर पर टाईप करते हुए दो वाक्यों के बीच में रुक कर एक ठंडी आह भर सकते हैं और सोच सकते हैं कि असल में मुझे कुछ नहीं पता कि यह सब क्या हो रहा है। किसने किया है। शायद यह सिलसिला मेरी ज़िंदगी में तो खत्म होने वाला नहीं।

आप ज़रा टी.वी. कैमरे के सामने ठंडी आह भर के देखें। कैमरा आप से फ़ोरन कट कर रिटायर्ड जनरल पर चला जाएगा।
(लेखक बी।बी.सी.उर्दू सेवा के पूर्व प्रमुख और उपन्यासकार हैं)

नोट:- हनीफ साहेब का यह लेख मासिक पत्रिका "लीक से हटकर" में प्रकाशित हुई है.

3 comments:

  1. हनीफ भाई में आप से पूर्ण रुप से सहमत हूं | इस सारे माले पर जितनी सनसनी टी.वी. चैनलों ने फैलाई कम से कम किसी भी बुद्धीजीवी से छिपा नही है | इन्हे सिर्फ और सिर्फ टी.आर.पी. बढानी है | आंतकवाद का कोई धर्म नही कोई मजहब नही, न तो पाकिस्तान का आम आदमी जंग चाहता है और न भारत का | दुख्: की बाद तो यह है कि चंद मुट्ठी भर लोग भाई-भाई के मन में द्वेष फैला रहे है | नाचने वाला कोई और, और नचाने वाला और है |

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  2. हनीफ भाई में आप से पूर्ण रुप से सहमत हूं | इस सारे माले पर जितनी सनसनी टी.वी. चैनलों ने फैलाई कम से कम किसी भी बुद्धीजीवी से छिपा नही है | इन्हे सिर्फ और सिर्फ टी.आर.पी. बढानी है | आंतकवाद का कोई धर्म नही कोई मजहब नही, न तो पाकिस्तान का आम आदमी जंग चाहता है और न भारत का | दुख्: की बाद तो यह है कि चंद मुट्ठी भर लोग भाई-भाई के मन में द्वेष फैला रहे है | नाचने वाला कोई और, और नचाने वाला और है |

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  3. हम ये कहते है की आतंकवाद का कोई धर्म या मज़हब नहे होता.. उनका उद्देश्य है सिर्फ़ तबाही मचाना..इसी तरह टीवी का भी कोई धर्म मजहब नही होता... उनका उद्देश्य होता सिर्फ़ टीआरपी बढाना...

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