12.1.09

बिहार: ख़ुशी की गोद में दर्द का दलदल

अब्दुल वाहिद आज़ाद

पिछले कुछ सालों में 'बिमारू' राज्य कहे जाने वाले बिहार के अंदर कई बदलाव आए और इसकी तारिफ़ राज्य के अंदर और बाहर ख़ूब हो रही है.

नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य को विकास का जो पहिया मिला वो लगातार नाच रहा है। नीतीश के दौर में विकास का काम इसलिए भी मुखर होकर दिख रहा क्योंकि इससे पहले लालू प्रसाद पति-पत्नी के 15 वर्षों के शासनकाल में राज्य विकास के बजाए विनाश की ओर बढ़ा।लेकिन ऐसा भी नहीं है कि नीतीश के दौर में सब कुछ अच्छा ही चल रहा है और मौजूदा सरकार पर लालू दौर का बुरा साया नहीं है।

लोगों के अंतर्मन में पहुँच कर लगता है कि अभी इस अंधेर नगरी में आम जनता का दुख दर्द कम नहीं हुआ है। फूल खिले तो हैं पर अभी भी कांटो की चुभन बहुत गहरी है.पिछले महीने दिसंबर में ईद के अवसर पर अपने गाँव में था, रिश्तेदारों से मिलने-जुलने के बहाने कई जगहों पर जाने का मौक़ा मिला, लेकिन निम्न और मध्य वर्ग के बीच सभी जगहों पर चर्चा का विषय लगभग एक ही दिखा, और वो था राज्य में शिक्षकों की नई बहाली का मामला।

शिक्षकों की बहाली लोग ख़ुश थे कि नीतीश ने अपने पिछले तीन साल के कार्यकाल में कुल मिलाकर तीन लाख लोगों को नौकरी दी है और अब फिर लगभग एक लाख शिक्षकों की बहाली करने जा रही है. प्रायमरी शिक्षकों की बहाली पंचायत स्तर पर तथा हाई स्कूल शिक्षकों की बहाली ज़िला स्तर पर करने का प्रावधान है।

हाई स्कूल शिक्षकों को बहाल करने का अधिकार ज़िला मुख्यालय के पास है जबकि प्रायमरी शिक्षकों को बहाल करने का अधिकार पंचायत के मुखिया को दिया है जोकि लोगों की परेशानी का सबब है क्योंकि ये धांधली का गढ़ बना हुआ है और यहाँ लूट-खसौट जारी है।

बहाली के लिए पहले ही एक सामान्य सूची निकाली जा चुकी है और एक मेधा सूची निकाली ही जाने वाली है जोकि उम्मीदवारों के विभिन्न परीक्षाओं में प्राप्त नंबरों के आधार पर तैयार की जा रही है।एक सीट के लिए 10 उम्मीदवारों के नाम निकाले जाएंगे, स्थानीय मामला होने की वजह से लोगों को मालूम है कि मेधा सूची में उनका क्या स्थान रहने वाला है लेकिन वे लोग घबराए हुए हैं कि कहीं मुखिया कोई गड़बड़ नहीं कर दे, और मुखिया इस घबराहट को देखते हुए नौकरी पक्की करने के लिए एक लाख से लेकर तीन लाख माँग रहे हैं।

ग़ैरहाज़िर दिखाने का हथियार

क्योंकि एक सीट के लिए जो दस लोग बुलाए जाते हैं उनमें किसी को भी ग़ैरहाज़िर दिखाने का हथियार मुखिया के पास है।पिछली बार की बहाली में कम नंबर वोलों को नौकरी देने के अधिकतर मामले ऐसे ही तय किए गए थे और पिछली बहाली में ज़बरदस्त धांधली हुई थी.

सरकार खुद सिर्फ़ जाली सर्टिफ़िकेट के चार हज़ार मामलों की जाँच कर रही है। ऐसे में इस बार मुखिया का एलान है कि अगर मेधा सूची में नंबर आगे होने के बाद भी बिना झमेला के नौकरी चाहते हैं तो बेहतर है कि लाख रुपये पहले ही दे दिए जाएं.ताज्जुब की बात ये है कि लोगों में मेधा सूची में अपना नाम पाकर भी ये रक़म चुपके से मुखिया और इससे जुड़े अधिकारी को देकर भी नौकरी पाने की आतुरता है लकिन उच्च अधिकारी को शिकायत करना नहीं चाहते क्योंकि वो आश्वसत हैं कि नीतीश के शासन पर से लालू का रंग फिका नहीं हुआ है।

दलाली का पैमाना

बात ये है कि मैं अपने गाँव में कुछ लोगों से बात कर रहा था तो एक श्रीमान ने व्यंग करते हुए बिहार की असल हक़ीकत पर रौशनी डालते हुए बताया कि जब मुखिया सार्वजनिक स्थान पर एक सोलर लाइट लगवाता है तो उसे 15 से 20 हज़ार रुपये का फ़ायदा होता है जबकि सोलर लाइट का कुल बजट 45 हजा़र रुपये है। ऐसे में अगर एक टीचर की बहाली में एक-दो लाख रुपये माँग ही रहा है तो क्या ग़लत है?राज्य में दलाली का कारोबार काफ़ी बड़ा है और इसकी बढ़ोतरी की दर चौंकाने वाला है।

पिछली बार की बहाली में मेधा सूची में नाम आने वालों को ग़ैरहाज़िर कर मुखिया ने दूसरे को नौकरी दी तो 30 हज़ार से लेकर एक लाख रुपये लिए थे लेकिन इस बार यहाँ आर्थिक मंदी का नहीं बल्कि महंगाई की मार है और माँग तीन गुना बढ़ गई है। इन एक लाख शिक्षकों की बहाली में 1.5 लाख रुपये घूस दिए जाते हैं तो ये रक़म 150 करोड़ पहुँच जाती है.

इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पिछले तीन सालों में सिर्फ़ राज्य की सरकारी नौकरियों को हासिल करने के लिए लोगों ने कितने करोड़ घूस में दिए हैं। ये बात सच है कि नीतीश के दौर में पिछले तीन सालों में कई क्रांतिकारी क़दम उठाए गए हैं.

भारतीय मानव इतिहास के सबसे बड़े जल प्रलय का जिस तरह से मुक़ाबला किया वो किसी से छुपा हुआ नहीं है।बाढ़ से प्रभावित लोगों को सरकार ने बेहतर सहायता पहुचाँई। एक हज़ार किलोमीटर आधुनिक रोड के लिए 5000 करोड़ रुपये खर्च किए। बिजली के लिए 7000 करोड़ रुपये का निवेश किया. नए डाक्टरों की बहाली की और उनकी ड्यूटी को सुनिश्चित करने के लिए कई सुविधाएं दी है जिनमें मोबाइल फ़ोन भी शामिल है.

नेताओं और नौकरशाहों का गठजोड़
कहने को नीतीश यह भी दावा कर रहे हैं कि उनके शासनकाल में अपराध का गिराफ़ निचे खिसका है। दलाली और भ्रटाचार में कमी आई है। लेकिन असल सवाल ये है कि पर्दे के पीछे जो कुछ हो रहा है उसके बारे में सराकर को कुछ पता भी या नहीं?और अगर सरकार को पता है तो वो इस सिलसिले में क्या कर रही है? क्या दुनिया को गंणतंत्र की पाठ देने वाले इस राज्य को सुधरने या सुधारने में अभी भी वक़्त लगेंगे? वो भी एक ऐसे नेतृत्व में जब राजनीतिक गलियारों में नीतीश कुमार की छवि एक इमानदार नेता के रुप में होती है, तो सवाल उठता है कि क्या नीतीश अभी भी नेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ को तोड़ पाने में कामयाब नहीं हो सके हैं और नौकरशाही में जो छिद्र पहले से मौजूद हैं वो अभी भी बंद नहीं हुए हैं।ऐसे में नीतीश की इमानदार छवि के बावजूद लगता है कि उनके नेतृत्व में कहीं न कहीं बड़ी रुकावट है जिससे वो पार पाने में कमायाब नहीं हो पा रहे हैं. शायद उस दिशा में नीतीश को सोचने और करने की आवश्यकता है.तभी जाकर जनता ख़ुशी के गोद में पल रहे दर्द के दलदल से निकल सकती है.

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