फिर एक बार वही राग। बहुमत मिला तो राम मंदिर। अब भाजपा के इस मजाक को जनता समझ गई है। पिछले बीस सालों से भाजपा यही नारा दे रही है। नारे कई थे, समय के साथ बदले गए।
-ए पाटी विद डिफरेंस।
-बच्चा बच्चा राम का, जन्म भूमि के काम का।
-कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे।
सैकड़ों और हजारों लोग इनके नारों के आवेश में आए, मारे गए। घर-घर ईंट का पूजन हुआ और पूरे देश में हिंदू लहर पैदा हुई। हर ब्लाक में ईंट की पूजा बीस साल पहले हुई। ब्लाक से जुलूस जब निकलता था तो देखने लायक होता था। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी खुद लोगों को राम नजर आते थे और लाल कृष्ण आडवाणी लक्ष्मण थे। लेकिन समय बीतने के साथ ही जब सत्ता का स्वाद लगा तो जो जनता के साथ इन्होंने धोखा किया वो सारा देश जानता है। कई बहाने बनाए और राम मंदिर की एक ईंट भी नहीं लगवा सके। यानि कि इन्होंने सता पाने के लिए राम के साथ भी धोखा किया।
अब देखिए नारा था- बच्चा बच्चा राम का, जन्म भूमि के काम का। इसे कुछ समय पहले एक मुस्लिम नेता ने मजे लेते हुए कहा, अब नारा भाजपा का बदल गया है, ....बच्चा बच्चा राम का जन्म भूमि के काम का... नारा बेमानी हो गया है। अब भाजपा का नारा है- बच्चा-बच्चा राम का, क्या प्रोग्राम है शाम का। यानि के शाम को क्या करोगे? आगे उन्होंने बताते हुए कहा कि इसका मतलब है कि शाम में कहां पैग-शैग का प्रोग्राम है। कितनी पेटियां आज शाम को आ रही हैं। बाकी और क्या इंतजाम है। कुछ तो रंगीनियत का इंतजाम हो जिससे शाम मजेदार हो। नारे हालांकि नारे होते हैं लेकिन इनमें कुछ हद तक सच्चाई भी होती है।
बंगारू लक्ष्मण की करतूत देख कर ऐसा ही लगता है। फिर कई भाजपा के नेता सत्ता के गलियारों में क्या करते हैं, सारों को पता है। अंतर यही है। कांग्रेसी करोड़ों में बिकते हैं, इनका स्टैंडर्ड लो है, लाखों में ही बिक जाते हैं। अब एक बार फिर भाजपा को राम मंदिर याद आ गया है। क्या जिस अखिल हिंदुत्व की बात हो रही है वो अब है। खुद लाल कृष्ण आडवाणी इस बात को समझते हैं। आडवाणी पूरे देश में स्वीकार्य नहीं हैं। उनकी स्थिति खराब है। उनकी पार्टी के नेता ही उन्हें नेता नहीं मानते हैं। आडवाणी जिस जाति से संबंधित हैं उस जाति की इतनी हैसियत नहीं कि वे उन्हें सता में लाए। अटल बिहारी वाजपेयी कम से कम पंडितों मे स्वीकार्य़ थे। इसके बाद देश के हर जाति के लोग जिसमें मुस्लिम बिरादरी भी शामिल थे कमोबेश उनके साथ थी। उनके समर्थक हर जाति में थे। पर आडवाणी के साथ स्थिति बदल गई है। देश में जातीय राजनीति हावी है। अब इसके लिए आडवाणी ही जिम्मेवार नहीं हैं।
आरएसएस की संकुचित सोच भी जिम्मेवार है। आरएएस ने हिंदुत्व का नारा तो दिया, लेकिन अपनी सामंती और पंडितवादी सोच से बाहर नहीं निकल सकी। यह सच्चाई थी कि इस देश के हिंदू आंदोलन को मजबूती पिछड़ों ने दी। लेकिन हर वो पिछड़े नेताओं को हाशिए पर लाया गया जो मजबूत होकर निकला। संघ कार्यालय में बैठे साजिशकारों ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। आज उमा भारती जैसी हिंदुत्व के पैरोकार की क्या स्थिति भाजपा ने की। इसमें संघ के नेताओं की क्या साजिश थी। यही हाल कल्याण सिंह के साथ हुआ। एक पिछड़े नेता ने जो हिंदुत्व की वकालत की उसे भी हाशिए पर लाया गया। झारखंड में बाबूलाल मरांडी के साथ क्या किया गया। यह भी झारखंड की आदिवासी जनता समझती है। भाजपा के मजबूत होते सोशल इंजीनियरिंग के जनक गोविंदाचार्य जो शायद अगड़ी जाति के थे उन्हें भी हाशिए पर संघ ने लाया।
यह सच्चाई है कि राम मंदिर आंदोलन उस अगड़े मानिसकता का परिचायक था जिन्होंने सता में आने के लिए ये सारा खेल किया। इसके मोहर के रुप में पिछड़ों को इस्तेमाल किया गया। लेकिन जब सत्ता आयी तो मलाई अगड़े लोग खाने लगे। इस मलाई के हिस्सेदार बने अरुण जेतली, प्रमोद महाजन, सुषमा सवराज, मुरली मनोहर जोशी और अन्य नेता। यहीं से पार्टी कई गुटों मे बंटनी भी शुरू हो गई। सत्ता का सिद्धांत होता है कि सत्ता में आने के बाद सत्ता की मलाई के बंटवारे को लेकर लड़ाई होती है। इस लड़ाई के कारण ही यूपी से भाजपा बाहर हो गई और दिल्ली से भी बाद में बाहर हो गई। मलाई की हिस्सेदारी को लेकर डा. जोशी और आडवाणी के बीच संघर्ष हुआ और आज जो स्थिति है वो सामने है। वहीं अरुण जेतली, प्रमोद महाजन औऱ सुषमा स्वराज की हालत सारे जानते हैं।
ये कागजी नेता कुशल मैनेजमेंट के नाम पर पार्टी पर कब्जा कर गए और जमीनी नेताओं को हाशिए पर ला दिया। खुद आडवाणी सारी सच्चाई को जानते हैं। उन्हें खुद महसूस होता होगा कि जब १९८९ में उन्होंने रथ यात्रा निकाली तो जनता का क्या रिसपांस था और इसके बाद कई रथ यात्रा उन्होंने निकाली तो जनता का क्या रिस्पांस था? इस देश की जनता इतनी बेवकूफ तो है नहीं कि उन्हें वल्लभ पटेल का प्रतिरुप मान वोट दे दे। आंखों से आंसू निकालने से वोट तो मिलता नहीं। जनता को जमीनी काम चाहिए, भाषण नहीं। आज भाजपा में वो नेता हैं जिनका जमीन नहीं है। पर वोट सारे समुदाय का चाहते हैं। दो मुसलमान भाजपा में घुमते हैं। दोनों की हैसियत क्या है सारे लोग जानते हैं। मुख्तार नकवी और शाहनवाज हुसैन कितने मुस्लिम वोट दिलवा सकते हैं ये भाजपा के लोग जानते हैं। इन दोनों का झगड़ा भी इस कदर है कि एक दूसरे का खून पी जाएं। शाहनवाज हुसैन हमेशा ये आरोप लगाते हैं कि नकवी कुछ हिंदू लड़कों को मुस्लिम टोपी पहना कर भाजपा आफिस में लाते हैं, अपनी वाहवाही लेते हैं। जबकि ऐसी कुछ टिप्पणी शाहनवाज के बारे में भी की जाती है। वे बिहार में जनाधारहीन नेता हैं और कोई भी मुसलमान उनके साथ नहीं है। भाजपा के कैडर और नितिश का वोट बैंक उन्हें जिताता है।
आज संघ की हालत क्या है, ये शायद कम लोगों को पता है। संघ की हालत इस समय सबसे जयादा खराब है। इनकी शाखाओं की संख्या कम हो गई है। पूरे देश में इनकी शाखाओं की संख्या जितनी थी उसकी आधी ही अब पूरे देश में है। इनके समर्थकों में हताशा है। उनका कहना है कि वे किस संघ की बात करें। यह भी साजिश का अड्डा है। किस संघ की बात करें। मदनदास देवी का संघ या मोहन भागवत का संघ। फिर ये भी हलुआ पूरी के गुलाम हैं। भाजपा के नेताओं ने इन्हें भ्रष्ट कर दिया है। इन्हें भी हरे-हरे नोट पहुंचा कर सारे सिद्धांत भुलवा दिया है।
ये भी उन्हीं भाजपा नेताओं के साथ हैं जो उन्हें पूरी खातिरदारी करते हैं। ये भी अब दौरों पर संघ कार्यालय नहीं बल्कि फाइव स्टार होटलों में ठहरते हैं। इन्हें भी अब एयरकंडिशन कार चाहिए। फिर कहां राम मंदिर बनेगा। जिन प्रदेशों में संघ ने भाजपा पर नियंत्रण रखने के लिए संगठन मंत्री भेजे हैं वो भी भ्रष्ट हो चुके हैं। उन्हें भी प्रदेश के भाजपा मंत्रियों ने खरीद लिया है। ये संगठन मंत्री भी पार्टी को मजबूत करने के बजाए आंतरिक साजिशों को हवा देते हैं ताकि मंत्री आएं और आशीर्वाद लेकर जाएं। इस पूरे खेल को आरएसएस के निचले सतर के कार्यकर्ता समझ चुके हैं और वे अब उदासीन हैं। उनका कहना है कि संघर्ष हम करें और मलाई ये खाएं। कोई जायज काम लेकर जाएं तो अनुशासन पढाते हैं। जबकि यही काम कोई पैसे लेकर जाता है तो वे करते हैं। अब आडवाणी की समस्या कहां से आ रही है। पीएम इन वेटिंग की समस्या यह है कि वे अपनी पार्टी में घिर गए हैं। इनके साथ कागजी घोड़े है। जमीनी स्तर पर वे हवा हैं। अरुण जेतली, सुषमा सवराज कागजी प्लान बना सकते हैं। दिल्ली में ड्राइंग रुम में अपनी पालिटिक्स कर सकते हैं। पर वे वोट खींचने की स्थिति में नहीं हैं। यही हाल पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के हैं। ये पूर्वी यूपी के कुछ ठाकुरों के नेता हैं। इन्हें दूसरे राज्यों तो क्या यूपी में ही पूरी तरह से अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है। जबकि एक डा. जोशी मायावती से सांठगांठ कर आडवाणी को नुकसान पहुंचाने में लगे हैं। अपनी जीत को पक्की करने के लिए वे बसपा को कम से कम दस सीटों पर मदद करेंगे। अब आडवाणी को ज्यादा खतरा बाहर से नहीं भीतर से है। उधर नरेंद्र मोदी भी शायद ही चाहें की आडवाणी इस बार जीतें। क्योंकि अगर आडवाणी पीएम बन गए तो खतरा मोदी को है। वे अगले आम चुनाव में पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट होना चाहते हैं। अगर आडवाणी पीएम बन गए तो उनका अगले आम चुनाव का चांस चला जाएगा। क्योंकि इस देश में पीएम बनने के बाद पीएम जवान हो जाता है। उसकी एज बढ़ जाती है।
Sanjivji aap baat pate ki kah gaye. Yahi,shaayad har Hindu ke dil ki BHADAS hai.
ReplyDeleteबढ़िया लिखा भाई, बिलकुल साफ साफ दिल की भड़ास है जो बिलकुल सच सच आज का माहौल है।
ReplyDeleteकरेक्शन करा दिया। हिंदी पढ़ते वक्त गल्तियां ईंट-कंकर की तरह लगती हैं। अगर आप शुद्ध हिंदी को लेकर तकनीकि दिक्कत से निपटने के लिए कोई सलाह चाहते हैं तो मुझे मेल करिएगा या फोन करिएगा।
यशवंत
राम मन्दीर कोई भौतिक वस्तु नही है। यह एक वैचारिक क्रांती है। यह देश की अस्मिता और गौरव के उपर खुखार आक्रांताओ के हमले का गुस्सा है। ऐसे करोडो बच्चे है जो इस बात को हार्दिक एवम आत्मिक स्तर पर समझते है। वह हरेक बच्चा राम जन्म भुमि के लिए अपना जीवन बलिदान करने की लिए सदैव तत्पर है। बच्चा बच्चा राम का - राम जन्म भुमि के काम का .......
ReplyDeleteराम मन्दीर कोई भौतिक वस्तु नही है। यह एक वैचारिक क्रांती है। यह देश की अस्मिता और गौरव के उपर खुखार आक्रांताओ के हमले के खिलाफ गुस्सा है। ऐसे करोडो बच्चे है जो इस बात को हार्दिक एवम आत्मिक स्तर पर समझते है। वह हरेक बच्चा राम जन्म भुमि के लिए अपना जीवन बलिदान करने की लिए सदैव तत्पर है। बच्चा बच्चा राम का - राम जन्म भुमि के काम का .......
ReplyDeletevery lucid piece
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