24.2.09

पटरी पर सरकती जिंदगी ?





पिछले दिनों संसद में अंतरिम रेल बजट पेश किया गया। रेल बजट पर केन्द्रित लैब जर्नल के लिए मुझे एक रिपोर्ट लिखना था। इसलिए मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ निकल पड़ा। रेलवे अघिकारियों से अनुमति लेने जब मैं पटरियों से गुजर रहा था तब मुझे आदित्य दिखाई दिए। आदित्य के बहाने मुझे गैंगमेनों की स्थिती जानने का मौका मिला ....



गैंगमैन आदित्य कुमार पिछले बीस वर्षों से रेलवे की सेवा कर रहे हैं। ये उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले हैं। इनकी नौकरी जब लगी थी तो परिवार खुशी से फूले नहीं समा रहा था। गरीब आदित्य की जिंदगी का यह सबसे हसीन पल था। घर छोड़कर ये कमाने दिल्ली आ गए। विश्वास था कि रेलवे इन्हे घर जैसा माहौल तो नहीं, कम-से-कम घर तो देगा ही। लेकिन इतने साल बीतने के बाद भी इन्हे एक अदद ‘घर’ की तलाश है। कहने को तो रेलवे ने इन्हे घर दिया है लेकिन उसे घर की तुलना में झुग्गी कहना ज्यादा सही होगा।यह कहानी केवल आदित्य की ही नहीं है। यह उन सब परिवारों की दास्तां है जो नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास बनाये गए ‘इस्ट इंट्री रोड झुग्गी’ के निवासी हैं। यह झुग्गी करीब चालीस वर्ष पुरानी है और यहां करीब 100 परिवारों का बसेरा है। रेलवे अपने चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के प्रति कितना संवेदनशील है इसकी बानगी यहां दिखती है?



इन कर्मचारियों के घरों की कई ‘विशेषताएं’ हैं। कई तो काफी जर्जर हो चुके हैं तो कई गिरने की हालत में हैं। इन घरों में बिना झुके घुसा नहीं जा सकता। दीवारें भी ऐसी मानो छूते ही गिर जाऐंगी। शौचालय की भी यहां कोई ठोस व्यवस्था नहीं। बारिश के मौसम में छत पर पाॅलिथीन की चादर डालना इनकी मजबूरी हैं।ऐसी बात नहीं कि इनके बदहाल जीवन को लेकर आवाज न उठाई गई हो। इनके संगठन आॅल इंडिया एससी/एसटी रेलवे इम्प्लॅायज एशोशियेसन ने आंदोलन किया तो इन्हें आंगनबाड़ी केन्द्र का तोहफा मिला। इसके बावजूद अभी भी यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। वैसे ‘सलाम बालक’ जैसे कुछ संगठन भी इन जगहों पर सक्रिय हैं, जो इनके बच्चों पढातें हैं।
आदित्य से मिलकर पता लगा कि पटरियों पर रेल की सुरक्षित दौड़ सुनिश्चित करने वाले कर्मचारी कितनी असुरक्षा में अपना जीवन बसर कर रहे हैं। घर के अभाव में झुग्गी में रह रहे इन कर्मचारियों की जीवन पटरी पर कब दौड़ेगी यह तो वक्त बताएगा? फिलहाल रेलवे की नीति से ये सरकने को मजबूर हैं?

1 comment:

  1. bahoot achchha likhe hain. likhte rahiye, padhata rahoonga.

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