14.2.09

परदेस में प्रणय दिवस ........

रुत विरह की चल रही थी , दिन प्रणय का आ गया ,

इम्तहाँ ये ही बचा था , आज ये भी आ गया ।


देखता हूँ आज मैं , इक फूल सबके हाथ में ,

महसूस करता हूँ कोई काँटा गले में आ गया ।


थे कभी इक डाल पर , अब हैं अलग पिंजरों में हम ,

दीद भी मुमकिन नहीं ,ये तक ज़माना आ गया ।


चंद सिक्कों के लिए आ तो गया परदेस मैं ,

पर छोड़ना क्या-क्या पड़ा ,फ़िर याद सब कुछ आ गया ।


तेरे हाल का तनहाई का , अहसास था पूरा मुझे ,

छोड़कर महफ़िल भरी , कमरे में अपने आ गया ।


प्रणय दिवस परदेस में आया है बस कुछ इस तरह ,

जैसे छिड़कने घाव पर कोई नमक है आ गया ।


आज सब हैं घूमते जोड़े से बगलगीर हो ,

बीता ज़माना साथ ले, तन्हाइयों में आ गया ।


परदेस था , तुम दूर थे ,मैं और क्या करता भला ,

आज बस इक रस्म सी, मैं हूँ निभाकर आ गया ।




यादें तेरी बांहों में भर , तेरा ख़याल चूमकर ,

तेरे नाम का इक फूल अलमारी में रख कर आ गया ।



तुम भी वहाँ इक फूल पर 'संजीव' लिख , होठों से छू ,

जूडे में टांक , आइने में देखना , मैं आ गया ।

http://trashna.blogspot.com

6 comments:

  1. ईश्वर की कृपा जल्द ही होगी, आशा बनाये रखें! बहुत सुंदर कविता के लिये साधुवाद!

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  2. ईश्वर की कृपा जल्द ही होगी, आशा बनाये रखें! बहुत सुंदर कविता के लिये साधुवाद!

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  3. beta dhaansu poem

    jokes apart bahut dard hai, kya majboori hoti h jo log yun chod kar
    chale jate h

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  4. क्या बात कही है भाई.....बात दिल छूकर गई

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  5. Anil ji ,Mr. Anonymous n dear yashvant ji,
    Thanks 4 reading and appreciation. At least there r 3people in this world liking my pen.
    thanks again.

    sanjeev mishra
    www.trashna.blogspot.com

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  6. बहुत अच्छी कविता लिखी है ,...धन्यवाद....

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