सुंदरतम सजनी
स्मृति-प्रिय सुंदरतम सजनी !
आया जब से तुम से मिल कर ,
ले - ले चुम्बन आलिंगन भर ,
नहीं भूलता मैं वह रजनी -
आच्छादित घन घोर घटा मैं,
पानी बरस रहा था रिमझिम ,
चकमक चमके विधुत-स्वर्णिम ,
अग-जग था अचित निद्रा मैं ;
आकर चुपके से पा अवसर ,
तुमने कितने धीरे - धीरे ,
हाथ बढ़ाकर मेरे नीरे,
था खींचा जब मेरा अम्बर ,
पाकर किंचित चेतनता को ,
करवट बदली ली अंगडाई ,
उसनींदी बाहें फैलाई ,
ज्यों ही मैंने ऊर्ध्व दिशा को ,
आई पुलकित जल्दी इतनी ,
लिए अतुल सुकुमार - शीलता ,
बाहु - पाश मैं, नहीं भूलता ,
स्मृति - प्रिय सुन्दरतम सजनी !
bahut accha kavita likhi hai,aapne
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