एक रोज हकबात ब्लाग के संचालक मेरठ निवासी सलीम अख्तर सिद्दिकी का फोन आया कि यशवंत भाई, मेरठ में ब्लागिंग पर संगोष्ठी है और ब्लागिंग पर ही हिंदी में लिखी गई एक किताब का विमोचन है, इसमें आपको आना है तो मेरा जवाब यही था- बिलकुल आउँगा भाई, मेरठ से मेरा पुराना प्यार है। किसी बहाने भी वहां पहुंचने का न्योता मिलता है तो जरूर पहुंचता हूं क्योंकि मेरठ में चार साल गुजारे हैं। और तय तारीख को न सिर्फ मैं पहुंचा बल्कि साथ में अपने पत्रकार मित्र दुर्गानाथ स्वर्णकार और अशोक कुमार को भी कार में लादकर ले गया। दुर्गा भी मेरठ में दैनिक जागरण में काम कर चुके हैं। अशोक कुमार घुमक्कड़ आदमी हैं सो कहीं जाने के नाम पर वे तुरंत तैयार हो जाते है। वहां पहुंचे तो बारिश तेज हो चुकी थी और चौधरी चरण सिंह विवि के उर्दू विभाग का सभागार खाली खाली था। ब्लागिंग पर पुस्तक के लेखक इरशाद भाई और सलीम अख्तर सिद्दिकी मिले। कुछ पत्रकार साथियों ने ब्लाग पर चर्चा शुरू की। देखते ही देखते लोग एक एक कर आते गए और सभागार थोड़ी देर में भरा पूरा नजर आने लगा। समारोह में शामिल होने के लिए मेरठ के कई वरिष्ठ पत्रकार दोस्त भी आए। इनसे मिलना सुखद लगा।
प्रोग्राम खत्म हुआ तो दैनिक जागरण आफिस पहुंचे, वहां लोगों से मिले-जुले और रात आठ बजे के करीब दिल्ली के लिए लौट पड़े। बारिश का मौसम, सेमिनार में वक्ता होने का महान बोध, दुर्गा की नई सरकारी नौकरी और घर के करीब सकुशल पहुंचते जाने की खुशी को कंबाइंड रूप से सेलीब्रेट करने के लिए दारू का एक अद्धा खरीदा गया और चलती कार में सेवन किया गया। जब दो पैग चढ़ जाए तो फिर बात पर बात निकलने लगती है। हुआ यही। दुर्गा-अशोक के साथ दो-दो पैग लड़ाने के बाद नए पुराने दिनों की इतनी सारी बातें होने लगी कि हम लोग तीन घंटे तक दिल्ली के आनंद विहार के आसपास ही अंडा और चना-चबेना खा-खाकर दारू गटकते रहे। रात दस बजे के करीब जब हम लोगों के घरों से फोन आने लगे तब टाटा बाय बाय बोल अपने अपने घरों की ओर भागे।
लीजिए, संगोष्ठी और समारोह की कुछ तस्वीरें यहां देखिए, बाकी तस्वीरें व रिपोर्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें...यशवंत
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संगोष्ठी के श्रोता
प्रोग्राम खत्म हुआ तो दैनिक जागरण आफिस पहुंचे, वहां लोगों से मिले-जुले और रात आठ बजे के करीब दिल्ली के लिए लौट पड़े। बारिश का मौसम, सेमिनार में वक्ता होने का महान बोध, दुर्गा की नई सरकारी नौकरी और घर के करीब सकुशल पहुंचते जाने की खुशी को कंबाइंड रूप से सेलीब्रेट करने के लिए दारू का एक अद्धा खरीदा गया और चलती कार में सेवन किया गया। जब दो पैग चढ़ जाए तो फिर बात पर बात निकलने लगती है। हुआ यही। दुर्गा-अशोक के साथ दो-दो पैग लड़ाने के बाद नए पुराने दिनों की इतनी सारी बातें होने लगी कि हम लोग तीन घंटे तक दिल्ली के आनंद विहार के आसपास ही अंडा और चना-चबेना खा-खाकर दारू गटकते रहे। रात दस बजे के करीब जब हम लोगों के घरों से फोन आने लगे तब टाटा बाय बाय बोल अपने अपने घरों की ओर भागे।
लीजिए, संगोष्ठी और समारोह की कुछ तस्वीरें यहां देखिए, बाकी तस्वीरें व रिपोर्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें...यशवंत
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संगोष्ठी के श्रोता
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ब्लागिंग ने लेखकों के छपने का इंतजार खत्म किया
सर्द हवाओं और बारिश के बीच ब्लागिंग पुस्तक का विमोचन
लो हो गया ब्लागिंग सेमिनार मेरठ में
मेरठ का ब्लागिंग सेमिनार कैमरे की नजर से
ब्लागिंग ने लेखकों के छपने का इंतजार खत्म किया
सर्द हवाओं और बारिश के बीच ब्लागिंग पुस्तक का विमोचन
लो हो गया ब्लागिंग सेमिनार मेरठ में
मेरठ का ब्लागिंग सेमिनार कैमरे की नजर से
बधाई बात पेलने के लिए
ReplyDeletebadhai ho
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