जलविद्युत परियोजनाओं को बंद कराने से आखिर किसे होगा फायदा ?
या केवल पुरस्कार पाने तक ही सीमित है ये ड्रामा?
राजेन्द्र जोशी
उत्तराखण्ड की गंगा घाटी में निमार्णाधीन जलविद्युत परियोजनाओं को बंद कराने के पीछे किन्ही लोगों का क्या उद्देश्य है? कहीं ये लोग उत्तराखण्ड की आर्थिक रीढ़ बनने जा रही इन परियोजनाओं को रोक कर इस नये राज्य को भिखारी तो नहीं बना देना चाहते या ये लोग कहीं विकास विरोधी तो नहीं ? गंगा का प्रवाह भला कोई रोक सकता है? ऐसे-ऐसे प्रश् आज आम उत्तराखण्डी नागरिकों के जेहन में कौंध रहे हैं। उन्हे लगता है गंगा की सफाई की जरूरत तो हरिद्वार से गंगा सागर तक के बीच होनी चाहिए न कि गोमुख से हरिद्वार के बीच। हां गंगा की पवित्रता का ध्यान यहां के लोगों को भी रखना होगा लेकिन विकास की कीमत पर गंगा पर बन रही जलविद्युत परियोजनाओं को यहां के लोग रोकना ठीक नहीं मानते। अब इन तथाकथित पर्यावरविदों तथा गंगा बचाओं के नाम पर पुरस्कार पाने वालों के खिलाफ एक आन्दोलन की जरूरत महसूस की जा रही है जो इस प्रदेश को अंधेरी सुरंग की ओर धकेलने का प्रयास कर रहे हैं। अखिर देश तथा प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई का करोड़ों रूपया खर्च करने के बाद इन परियोजनाओं को रोकने का क्या मकसद है। इन परियोजनाओं पर देश तथा प्रदेश के हजारों रोजगार पा रहे लोगों को बेरोजगार कर क्या ये तथाकथित ''गंगाप्रेमी''े भीख का कटोरा इन बेरोजगार हुए लोगों के हाथों में थमाना चाहते हैं?
ण एक के बाद एक बंद हो रही निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं के कारण जहां प्रदेश की आर्थिकी प्रभावित हो रही है वहीं ऊर्जा के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर विद्युत उत्पादन को भी भारी हानि उठानी पड़ रही है। पर्यावरण तथा गंगा बचाओ आन्दोलनों के नाम पर हो रहे खेलों के कारण जहां इन परियोजनाओं की कीमत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है वहीं इन परियोजनाओं के बंद होने से हजारों लोग बेराजगारी की मार झेलने को मजबूर हैं। जानकारों का मानना है कि विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को किसी भी परियोजना के शुरू किये जाने से पहले जांचा-परखा जाना चाहिए था। ताकि करोड़ों खर्च होने के बाद परियोजनाओं के बंद किए जाने की नौबत ही न आये। अब ऐसे में परियोजनाओं के बंद होने के कारण होने वाली करोड़ों की क्षति के लिए भी जवाबदेही तय की जानी चाहिए ताकि आमजन के पैसे का दुरपयोग न हो।
उल्लेखनीय है कि गंगा बचाने के नाम पर अब तक राज्य सरकार की दो महत्वाकांक्षी जल विद्युत परियोजनाओं में से 480 मेगावाट की पाला मनेरी जिसकी लागत दो हजार करोड़ रूपये आंकी गयी थी और इस पर सरकार ने 80 करोड़ रूपये खर्च भी कर दिये थे बीती जून माह में बंद कर दी गयी वहीं 381 मेगावाट की भैरोंघाटी योजना जिस पर निर्माण की अनुमानित लागत भी लगभग दो हजार करोड़ आंकी गयी थी को भी बंद करने के आदेश प्रदेश सरकार प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के पहले उत्तरकाशी तथा बाद में दिल्ली में अनशन पर बैठने के कारण पहले ही बंद की जा चुकी हैं और अब एनटीपीसी बनायी जा रही 600 मेगावाट की लोहारी नागपाला जलविद्युत परियोजना जिसकी लागत 22सौ करोड़ रूपये आंकी गयी थी, पिछले तीन साल को निर्माणाधीन है, तथा जिसका लगभग 30 से 35 फीसदी निर्माणकार्य पूरा भी हो चुका है और इस पर एनटीपीसी लगभग 600 करोड़ रूपए खर्च हो चुके हैं, पर भी केन्द्र सरकार ने 20 फरवरी को बंद करने का निर्णण ले लिया है। जहां तक पाला मनेरी तथा भैंरोघाटी परियोजनाओं का सवाल है इन परियोजनाओं के पूर्ण होने के बाद इनसे प्रदेश को पूरी की पूरी बिजली मिलनी थी और जो प्रदेश को जहां ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलम्बी बनाती वहीं इससे प्रदेश को अतिरिक्त आय भी होती लेकिन गंगा बचाओं अभियान की भेंट ये योजनाऐं चढ़ गयी। साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी बिजली की मांग को पूरा करने में मददगार होती। जहां तक लोहारी नागपाला योजना की बात की जाय इसे भले ही केन्द्र सरकार का उपक्रम एनटीपीसी ही क्यों न बना रहा है लेकिन इससे प्रदेश को 13 फीसदी बिजली मुफ्त में मिलनी थी। सवाल मुफ्त में बिजली मिलने का नहीं सवाल है नये राज्य की आर्थिकी का भी और सवाल है देश तथा राज्य के उन लोगों का जिनको इन योजनाओं के बंद होने के कारण बेरोजगार होना पड़ा है।
गंगा बचाओं तथा पर्यावरण आन्दोलनों के कारण टिहरी परियोजना का भी कमोवेश यही हाल हुआ। 1972 में 196 करोड़ की लागत से बनने वाली यह परियोजना पूर्ण होने पर 6500 करोड़ तक जा पहुंची है। जिससे निर्माण में जहां लागत बढ़ी है वहीं देश मिलने वाली बिजली में भी देरी हुई है उस वक्त भी पर्यावरण और समाज सेवा से जुड़े होने का दावा करने वाले लोग विकास में आम जनता की नजर में बाधक बनते दीख रहे थे। इनमें से कुछ को राष्ट्रीय सम्मान तक भी प्रदान किया गया। गंगा तथा पर्यावरण के नाम पर रोज-रोज इन बांधों के खिलाफ आन्दोलनों से अखिर किन लोगों को इसका फायदा पहुंच रहा है इसके भी जांच किए जाने की आवश्यकता है। परियोजनाओं के लगातार विरोध के बाद अब स्थानीय लोग भी इन तथाकथित गंगा बचाओ तथा पर्यावरण बचाओ के नाम पर आन्दोलन कर रहे लोगों के खिलाफ मुखर होने लगे हैं। क्योंकि पिछले अनुभवों के आधार पर टिहरी बांध निर्माण को लेकर आन्दोलन करने वालों के समय के साथ हुए बदलाव की मानसिकता के वाकिफ हैं। अब आम जनता इन लोगों को चिन्हित कर चुकी है। चार धाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष सूरतराम नौटियाल के अनुसार अकेली लोहारी नागपाला परियोजना से प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 1500 से ज्यादा बेरोजगार जुड़े हुए हैं। केन्द्र सरकार ने परियोजना को रोक कर जहां पूरे देश का आर्थिक नुकसान किया है वहीं युवाओं को भी बेराजगार कर दिया है। क्षेत्र के तमाम बुद्धिजीवियों तथा समाजसेवियों का कहना है यदि इसी तरह देश तथा प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ बनने जा रही इन परियोजनाओं का इस तरह विरोध होता रहा तो देश के तथा प्रदेश के सामने संकट पैदा हो जाएगा। वहीं इनका कहना है कि गंगा क ो साफ रखने की जो लोग सोच रहे हैं उन्हे हरिद्वार से लेकर गंगा सागर तक गंगा की दशा पर सोचना होगा न कि गंगोत्री से हरिद्वार तक के बारे में। इनका कहना है गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक गंगां वैसी भी साफ है और यहां से बह रहे पानी का उपयोग देश तथा राज्य क ो मिलने वाली ऊर्जा परियोजनाओं में किया जाना चाहिए।
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