जब मुझे प्यार नही था तो सोचता था कि जिस दिन प्यार करूँगा तो टूटकर करूँगा। सारी दुनिया भुला बैठूँगा। दोनों हाथ खोलकर खुशी से सारे आकाश को दौड़कर बांहों में भर लूँगा। खिली खिली फिजाये सिर्फ़ मेरी होंगी। फूल मेरे लिए खिलेंगे, बसंत मेरे लिए गाएगी और पतझड़ की उदासी मुझे छो तक नही पाएगी, बूँदें मेरे लिए बरसेंगी, सुबह मेरी होगी, शाम मेरी। सर्दी के गुलाबी दिन और गर्मियों की चांदनी रातें सिर्फ़ मेरे लिए महकेंगी।
मैं ऐसे प्यार करूँगा कि हर पल खुशियों से लबालब हो जाएगा। वो चाहे न चाहे पर मैं तो वेपनाह प्यार करूँगा उसे। ऐसे कि धर्मवीर भारती की उपन्यास गुनाहों का देवता का प्यार भी बहुत पीछे छूट जाएगा। उपन्यास की नायिका सुधा भी मुझ सा प्यार करने को लालायित हो उठेगी। उसकी हसी पर सारा जहा न्योछावर कर दूंगा। उसे इक पल दूर नही होने दूंगा। अपने रिश्ते को ऐसी गहराईयों तक ले जाऊंगा जहा से जुदाई की सारी लकीरें ख़ुद व ख़ुद मिट जाती हैं। प्यार की ऐसी गर्माहट दूंगा कि जीवन में कुछ और पाने की लालसा नही रह जायेगी। मेरे दिन जीवन के सबसे खूबसूरत और अनमोल लम्हे बन जायेंगे। जो भुलाये नही भूलेंगें।
उसका हाथ अपने हाथो में लेकर घंटों यूँ ही देखता रहूँगा। वो होगी तो जिन्दगी होगी। कोई गम मुझे छू तक नही पायेगा। पहले जानबूझकर उसे नाराज कर दूंगा फ़िर सर झुकाकर माना लूँगा। उसे।
ऐसा प्यार जहा एक-दूसरे के बिन जीना मुश्किल होगा। एक दिन बात न होने पर पहाड़ सा टूट पड़ेगा। जहा धडकनों को धडकनों के धड़कने से महसूस किया जाता हो। जहा मिलने की उत्सुकता हो, जहा एक दूसरे के लिए बेचैनी हो, जहा आतुरता हो, बेताबी हो, महज दिल बात करता हो दिमाग जैसी कोई चीज दरमियाँ न हो, जहा पागलपन हो, व्याकुलता हो, एक-दूजे से मिलने के लिए जहा छटपटाहट हो, रातों को अचानक उठ कर बैठ जाते हो जब नीद टूट जाती है,
पर आज जाने क्यो उसके होते हुए भी तनहा हूँ। सोचता हूँ कितनी अजीब होती हैं ये ख्यालों की बातें,,,,,,,, ? सच्चे प्यार की तलाश संभल जाओ ....
राहुल कुमार
जो कुछ आपने सोचा वो सभी सोचते है....लेकिन ये बातें ख्यालों में ही अछि लगती है.शादी के बाद जब घर घ्रिह्श्थी के फेर में पड़ते है तो ये सब हवा हो जाता है तभी अपने में सही मायनों में परिपक्वता आती है...लेकिन इस सब में गलत कुछ नहीं है..सभी सोचतें है तो अपन लोगों ने भी सोच लिया तो क्या गुनाह हो गया....
ReplyDeleteअजीब होत ाहै प्यार। प्यार तो चंद्रमा की शीतलता है, सूरज की तपिश है, सागर की गहराई है और धरा का धैर्य है। इसके बाद भी व्यकि्त अकेला है।
ReplyDeleteअजीब होत ाहै प्यार। प्यार तो चंद्रमा की शीतलता है, सूरज की तपिश है, सागर की गहराई है और धरा का धैर्य है। इसके बाद भी व्यकि्त अकेला है।
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