उमेश पंतwww.naisoch.blogspot.com
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आजा आजा जिन्द सामियाने के तले। और इसके बाद जय हो। आस्कर सेरेमनी में अभी जब इस संगीत के सामियाने में ए आर रहमान पुरस्कार ले रहें हैं तो दिल गर्व से गदगद हो रहा है। हांलाकि ए आर रहमान पहले गोल्डन ग्लोब और उसके बाद बाफटा में कमाल दिखा चुकी थी। लेकिन आस्कर आंखिर आस्कर है। ये हर भारतीय के लिए गर्व की बात है कि भारत के संगीत को इस बार विश्व में अलग पहचान मिली है। इसे एक विडंबना जरुर कहा जा सकता है कि जिस विषय पर यह फिल्म बनी है उस विषय का अस्तित्व हमारे यहां कायम है। और उस विषय पर फिल्म किसी विदेशी ने बनायी। हांलाकि इस बात को लेकर बहस भी की गई कि फिल्म भारत की गलत छवि को दिखा रही है। लेकिन सच्चाई को कितना ही छुपा लिया वा छुपती नहीं। और जो सच है। वो है। पर अभी सबसे बढ़ा सच ये है कि स्लमडौग मिलिनियर ने भारत की जय पूरे विश्व में करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
गुलजार जैसे शब्दों के बाजीगर को देर से ही सही उसका स्थान मिला। और रसूल कुटटी को भी बेस्ट साउन्ड एडिटिंग का पुरस्कार मिला। दरअसल किसी कलाकार को जब उचित सम्मान मिलता है तो उसके अन्दर की खुशी में एक आध्यात्मिक सा सुख होता है। रहमान या कुटी जब स्टेज पर पुरस्कार ले रहे थे तो यह सुख साफ झलक रहा था। आस्कर जैसे फिल्मी दुनिया के सबसे बड़े सम्मान का हकदार तो रहमान और गुलजार हमें बना ही चुके हैं लेकिन बइ सवाल उस सच्चाई को स्वीकारने का भी है जो फिल्म की रगों में समाई हुई है। वो गरीबी वो फरेब सब कुछ सच है। डैनी बोएल ने उसे देखा है और उसे सिनेमा के पर्दे पर उतारा है और अब हम उसे देखें और उसके लिए कुछ करें तो यह सम्मान सार्थक हो पायेगा। एक फिल्म के रुप में झंडे गाड़ चुकी इस फिल्म के बहाने हम सोचें कि
मखमल के परदे के पीछे
फूलों के उस पार।
ज्यों का त्यों है बसा आज भी
मरघट का संसार।
इस गौरवशाली मौके पर ये पंक्तियां आपको निराश कर सकती हैं। आपकी उत्सवधर्मिता को ठेस पहुंचा सकती हैं। पर यहां आग्रह यही है कि खुशियां मनायें पर न भूलें कि खुशियां मनाने की वजह सात अवार्ड धड़ाधड़ दिला सकती है लेकिन एक देश को इन सच्चाइयों को स्वीकारे बगैर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। फिलवक्त भारतीय संगीत और संगीतकारों की जय हो कहने से मुझे कोई नही रोक सकता।
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