23.3.09

मुझसे ज्यादा खुशकिस्मत कौन होगा ?
आज सुबह से ही सोच रहा था क्या लिखूं-क्या लिखूं? ऐसे महान क्रांतिकारी के बारे में जो इस भारत देश के नौजवानों का आदर्श है। भारत का ऐसा कोई युवा नहीं होगा जो भगत सिंह के बारे में न जानता हो और एक बात भगत सिंह सर्वाधिक पंसद किये जाने वाले भारत माता के सपूत हैं। यह बात इंडिया टुडे द्वारा सन् 2008 में किये गए सर्वेक्षण से पता चलता है जिसमें भगत सिंह को 60 महान भारतीयों में प्रथम महान भारतीय माना गया। इंडिया टुडे के इस सर्वेक्षण के अनुसार उन्हें 37: भारतीयों ने उन्हे भारत माता का महानत सपूत बताया। इसी कारण सुबह से पशोपेश में था क्या लिखूं ? नहीं लिखू तो अपने लिखने का कोई मतलब नहीं रह जाता। तब सोचा उनके द्वारा लिखे गये पत्र को ही लिखते हैं जिससे उनका भारत के प्रति अगाध प्रेम छलकता है। हाँ इसके बाद जरूर एक निजी अनुभव लिखूंगा जिसने मुझे बहुत पीढ़ा दी थी।
फांसी के एक दिन पहले 22 मार्च 1931 को, सेन्ट्रल जेल के ही 14 नम्बर वार्ड में रहने वाले बंदी क्रंातिकारीयों ने भगत सिंह के पास एक पर्चा भेजा- ‘सरदार, यदि आप फांसी से बचना चाहते हो तो बताओ। इन घड़ियों में शायद कुछ हो सके।’ भगत सिंह ने उन्हे यह उत्तर लिखा-
जिन्दा रहने की ख्वाहिश कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन मेरा जिन्दा रहना मशरूत(एक शर्त पर) है, मैं कैद होकर या पाबन्द होकर जिन्दा रहना नहीं चाहता।
मेरा नाम हिन्दुस्थानी इकंलाब पार्टी का निशान बन चुका है और इकंलाब-पसन्द पार्टी के आदर्शों और बलिदानों ने मुझे बहुत ऊंचा कर दिया है। इतना ऊंचा कि जिन्दा रहने की सूरत में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता।
आज मेरी कमजोरियां लोगों के सामने नहीं है। अगर मैं फांसी से बच गया तो वह जाहिर हो जाएंगी और इंकलाब का निशान मद्धिम पड़ जायेगा या शायद मिट ही जाये, लेकिन मेरे दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते फांसी पाने की सूरत में हिन्दुस्थानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए बलिदान होने वालों की तादाद इतनी बढ़ जायेगी कि इन्कलाब को रोकना इम्पीरियलिज्म(साम्राज्यवाद) की तमामतर शैतानी शक्तियों के बस की बात न रहेगी।
हां, एक विचार आज भी चुटकी लेता है। देश और इन्सानियत के लिए जो कुछ हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवां हिस्सा भी मैं पूरा नहीं कर पाया। अगर जिन्दा रह सकता, तो शायद इनको पूरा करने का मौका मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता।
इसके सिवा कोई लालच मेरे दिल में फांसी से बचे रहने के लिए कभी नहीं आया। मुझसे ज्यादा खुशकिस्मत कौन होगा? मुझे आजकल अपने आप पर बहुत नाज है। अब तो बड़ी बेताबी से आखिरी इम्तिहान का इन्तजार है। आरजू हे कि यह और करीब हो जाये।
आपका साथी
भगत सिंह

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