18.3.09

मुझे अपने घर का आँगन व सामने की गली याद आती है....

मुझे अपने घर का आँगन व सामने की गली याद आती है ,
जहाँ कभी , किसी जमाने में मेले लगते थे ।
वो खिलौने याद आते है ,जो कभी बिका करते थे ।

छोटा सा घर , पर बहुत खुबसूरत ,
शाम का समय और छत पर टहलना ,
सबकुछ याद है ।

कुछ मिटटी और कुछ ईंट की वो इमारत ,
वो रास्ते जिनपर कभी दौडा करते थे ,
सबकुछ याद है ।

गंवई गाँव के लोग कितने भले लगते थे ,
सीधा सपाट जीवन , कही मिलावट नही ,
दूर - दूर तक खेत , जिनमे गाय -भैसों को चराना ,
वो गोबर की गंध व भैसों को चारा डालना ,
सबकुछ याद है ।

गाय की दही न सही , मट्ठे से ही काम चलाना ,
मटर की छीमी को गोहरे की आग में पकाना ,
सबकुछ याद है ।

वो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना ,
भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना ,
सबकुछ याद है ।

बैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली ,
वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना ,
सबकुछ याद है ।

पाठशाला में किताबें खोलना और छुपकर भाग जाना ,
दोस्तों के साथ बागीचों में दिन बिताना ,
सबकुछ याद है ।

नानी से कहानी की जिद करना ,मामा से डांट खाना ,
नाना का खूब समझाना ,
मीठे की भेली को चुराना और चुपके से निकल जाना
सबकुछ याद है ।

अब लगता है , उन रास्तों से हटा कर कोई मुझे फेंक रहा है । वो दिन आज जब याद याते है तो मन को बेचैन कर देते है ...... अब कुछ यादें धुंधली होती जा रही है । फ़िर भी बहुत कुछ याद है ।

2 comments:

  1. bahut sunder yadain or unka varan vah kya lekhni hai...........sach tumhari kavita padkar mujhey bhi apney vo din ankhon key samney jyon key tyon tairney lag padey नानी से कहानी की जिद करना ,मामा से डांट खाना ,
    नाना का खूब समझाना ,
    मीठे की भेली को चुराना और चुपके से निकल जाना
    सबकुछ याद है..............
    bilkul jeevant

    ReplyDelete
  2. आप की कहानियो ने बचपन की याद दिलाई ..पर क्या करें बचपन कहाँ लौट के आता है..वो तो एक याद है जो रह रह कर उठती है...

    ReplyDelete