28.3.09

आइए भूल जाते हैं बापू के इन सपनों


बात थोड़ी अटपटी लगती है। सीधी सपाट बातें हमेशा अटपटी ही लगती है शायद। देश एक बार फिर से लोकतंत्र के महापर्व की तैयारी कर रहा है। जनता एक बार फिर से सरकार चुनेगी और देश की किस्मत में लिखी जाएंगी फिर वही पुरानी कहानियां। देश के इस भविष्य को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बहुत पहले ही भांप लिया था। एक तरह से कह सकते हैं कि वे जान चुके थे कि यह देश उनके सपनों की- उनकी सोच की कब्रगाह बनने जा रही है।
महान स्वतंत्रता सेनानी महावीर त्यागी ने एक पुस्तक लिखी है- वे क्रांति के दिन। इसमें उन्होंने गांधी जी से जुड़ी कई बातें लिखी है। उन्होंने लिखा है... १४ मई १९४७ को बापू काफी थके हुए थे। उनकी तबीयत भी थोड़ी गड़बड़ चल रही थी। डा. विधानचंद्र राय उनसे मिलने आए और कहा, यदि अपने लिए नहीं तो जनता की अधिक सेवा करने के लिए ही सही पर क्या आराम करना आपका धर्म नहीं बन जाता? बापू बोले, हां, यदि लोग मेरी कुछ भी सुनें और मैं लोगों के किसी उपयोग का हो सकूं तो... पर अब मुझे नहीं लगता है कि मेरा कोई उपयोग है। भले ही मेरी बुद्धि मंद हो गई हो फिर भी संकट के इस काल में आराम करने की बजाए करना या मरना ही पसंद करूंगा। मेरी इच्छा बस काम करते-करते और राम रटन करते-करते मरने की है। मैं अपने अनेक विचारों में बिल्कुल अकेला पड़ गया हूं। फिर भी ईश्वर मुझे साहस दे रहा है।
देश में सरकार बनने के बाद जनसेवकों से रहन-सहन से भी बापू दुखी रहा करते थे। एक बार प्रार्थना करने के वक्त बापू ने कहा था कि, स्वतंत्रता का जो अमूल्य रत्न हमारे हाथ आ रहा है, मुझे डर है कि हम उसे खो बैठेंगे। स्वराज्य लेने का पाठ तो हमें मिला परन्तु उसे टिकाए रखने का पाठ हमने नहीं सीखा। अंग्रेजों की तरह बंदूकों के जोर पर हमारी राज्य सत्ता नहीं चलेगी। आशंका है कि जनसेवा की बात करने वाले ही जनता को धोखा देंगे और सेवा करने की बजाए उसके मालिक बन जाएंगे या मालिकों की तरह ही व्यवहार करेंगे। मैं शायद जीऊं या न जीऊं परन्तु इतने वर्षों के अनुभव के आधार पर चेतावनी देने की हिम्मत करूंगा कि देश में बलवा मच जाएगा, सफेद टोपी वालों को लोग चुन-चुनकर मारेंगे और कोई तीसरी सत्ता उसका लाभ उठाएगी।
१९ अप्रैल १९४७ को जब बिहार का मंत्रिमंडल बापू से पटना में मिलने आया तो पटना में बापू ने कुछ अपने विचार भी रखे। उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल के सदस्यों और गवर्नरों को कैसे रहना चाहिएः-
मंत्रियों और गवर्नरों को यथासंभव स्वदेशी वस्तुएं ही काम में लानी चाहिए। उनको और उनके कुटुंबियों को खादी पहनना चाहिए और अहिंसा में विश्वास रखना चाहिए।
उन्हें दोनों लिपियां सीखनी चाहिए पर जहां तक संभव हो आपसी बातचीत में अंगेजी का व्यवहार नहीं करना चाहिए। सार्वजनिक रूप से हिंदुस्तानी और अपने प्रांत की भाषा का ही उपयोग करना चाहिए।
सत्ताधारी की दृष्टि में अपना सगा बेटा, सगा भाई, एक सामान्य व्यक्ति, कारीगर या मजदूर सब एक से होने चाहिए।
व्यक्तिगत जीवन इतना सादा होना चाहिए कि लोगों पर उसका प्रभाव पड़े। उन्हें हर रोज देश के लिए एक घंटा शारीरिक श्रम करना चाहिए। या तो चरखा कातें या साग-सब्जी लगाना चाहिए।
मोटर और बंगला तो होना ही नहीं चाहिए। आवश्यकता के अनुसार साधारण मकान का उपयोग करना चाहिए। हां, यदि दूर जाना हो या किसी खास काम से जाना हो तो जरूर मोटर काम में ले सकते हैं। लेकिन मोटर का उपयोग मर्यादित होना चाहिए। मोटर की थोड़ी बहुत जरूरत तो कभी न कभी रहेगी ही।
घर के दूसरे भाई-बहन घर में हाथ से ही काम करें। नौकरों का उपयोग कम से कम होना चाहिए।
सोफा सेट, आलमारियां या चमकीली कुर्सियां बैठने के लिए नहीं रखनी चाहिए।
मंत्रियों को किसी प्रकार का व्यवसन तो होना ही नहीं चाहिए।
प्रत्येक मंत्री के बंगले के आसपास आजकल तो छह या इससे अधिक सिपाहियों का पहरा रहता है वह अहिंसक मंत्रिमंडल को बेहूदा लगना चाहिए।
इसी समय उन्होंने यह भी कहा था कि, लेकिन मेरे इन सब विचारों को भला मानता कौन है। फिर भी मुझसे बिना कहे रहा भी नहीं जाता क्योकि चुपचाप देखते रहने की मेरी इच्छा नहीं है।
अब बापू की बात तो हम सबने सुन ली पर सच बापू भी जानते थे- हम भी जानते हैं और आप भी। तो आइए भूल जाते हैं बापू के इन सपनों को और जमकर मनाते हैं एक बार फिर लोकतंत्र का जश्न।

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