द ग्रेट इंडियन पोलिटिकल जंगल शो में देश की इज्जत पर बट्टा लगाने की होड़ एक बार फिर शुरू हो गई है.इस बार दाँव पर है देश का अब तक का सबसे बड़ा और सबसे लोकप्रिय खेल तमाशा इंडियन प्रीमिअर लीग यानि आईपीएल .मैं व्यक्तिगत रूप से इस तमाशे का समर्थक हूँ या नहीं यह बात अलहदा है,पर मुझे यह जरूर लग रहा है कि यदि हम आईपीएल का आयोजन सफलतापूर्वक नहीं करवा पाए दुनिया में हम एक ऐसे राष्ट्र के रूप में बदनाम हो जायेंगे जो एक समय में एक ही बड़ा आयोजन करा सकता है और आंतरिक तथा बाह्य सुरक्षा के जिसके दावे सिर्फ गाल बजाने के लिए हैं.क्रिकेट के धुर विरोधियों को भी यह बात तो माननी ही होगी कि पिछले साल इस तमाशे ने बोलीवुड को भी पछाड़ दिया .देश का यही एकमात्र खेल आयोजन है जिसमें भाग लेने दुनिया के शीर्षस्थ खिलाडी तैयार रहते हैं.इस आयोजन को लेकर राजनीति कि बाल कभी गुगली तो कभी दुसरा और कभी योर्कर की तरह केंद्र तथा राज्यों के द्वारा एक दूसरे की ओर फेंकी जा रही है.कारण भी साफ़ है.इस दुधारू खेल के राज्य संघों पर मक्खियों की तरह राजनेता ही चिपके हुए हैं.उनके लिए खेल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है एक दूसरे को नीचा दिखाना शायद वे इसीलिए इस बात को नहीं समझ पा रहे है कि आई पी एल के साथ देश का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है । हम इसे अब फकत एक खेल न मानें बल्कि राष्ट्र की परीक्षा मानें । इस एक आयोजन को करवाने में हमारी नाकामी हो सकता है कि भविष्य की आर्थिक संभावनाओं को भी कमजोर कर दे । आतंकवाद से निपटने की जगह यदि हम खेलो पर लगाम कसने लगेंगे तो यह हमारी बेवकूफी होगी । आगे हमें राष्ट्रमंडल खेल और विश्वकप क्रिकेट आयोजित करने हैं । आई पी एल की अनिश्चितता पर्यटन और विमानन उद्योग जिस में होटल भी शामिल हैं, की संभावनाओं को भी प्रतिकूल सन्देश देगी . आखिर हम चुनावों को हौआ बना कर दुनिया को क्या बताना चाहते हैं . हमारे यहाँ चुनावों में अशांति की स्थिति अधिक से अधिक बिहार ,जम्मू कश्मीर या पश्चिम बंगाल में होती है । इनमे से आई पी एल के खेल भी सिर्फ़ कलकत्ता में होते है ।
फिर क्यों डर रहे है हम .......?
मैं आपकी बात से एक हद तक सहमत हूँ, लेकिन आई पी एल इस बार 16 शहरों में होने वाला है।और चुनाव भी नजदीक है अतः Suraksha की चिंता होना लाज़मी है।
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