7.3.09
गांधी के देश में ही गांधी अजनबी
गांधी के दर्शन पर चलकर आगे बढ़ी कांग्रेस आज उनके मूलभूत सिद्धान्तों को ही भूलती जा रही है। ये विडम्बना ही है कि गांधी की धरोहर के रूप में न्यूयार्क में जेम्स ओटिस के पास रखा उनका चश्मा, घड़ी, चप्पलें, प्लेट और कटोरी को वापस लाने का झूठा श्रेय लेने से भी गुरेज नहीं कर रही है। बापू की इस विरासत की नीलामी रूकवाने में असमर्थ सरकार के पास जब कोई रास्ता नहीं बचा तो वह वाइन किंग विजय माल्या के देशभक्ति के जज्बे को भुनाने में लग गई। हद तो तब हो गई जब पर्यटन और संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने उनको अपना रिप्रेजेंटेटिव बता डाला। कोई इनसे जाके पूछे कि नीलामी होने तक माल्या का नाम ही सामने नहीं था तो क्या सपने में माल्या सरकार के रिप्रेजेंटेटिव बना दिए गए थे। शराब के पैसे ही सही,लेकिन माल्या ने एक हिन्दुस्तानी होने के नाते जो काम किया वह काबिले तारीफ है। यहां नीलामी में माल्या द्वारा चुकाए गए नौ करोड़ ३० लाख रूपए नहीं बल्कि उनकी अपने देश के प्रति जिम्मेदारी की भावना मोल रखती है। संसद में एक दूसरे पर कीचड़ उछालने वाले राजनेता जो देश की संपत्ति का नाहक ही नुकसान करते है, उनसे अच्छे तो विदेशों में बसे वह भारतीय उद्योगपति है जो कम से कम बाहर रहकर भी देश के बारे में सोचते है। भारतीय अमेरिकी समुदाय के नेता संत सिंह चटवाल का यह बयान कि यह पहले ही तय कर लिया गया था कि "बापू का सामान किसी विदेशी के हाथ नहीं जाने दिया जाएगा" यह जज्बा एक सच्चे देशवासी का परिचय कराता है। वहीं दूसरी तरफ बापू के सामान के वापस आने पर वाहवाही लूटने के लिए तैयार सरकार तो यह तक नहीं जानती थी कि बापू के सामान की नीलामी होने जा रही है। २७ फरवरी को राज्यसभा में सपा के सांसद महेंन्द्र मोहन ने सामने वाली पार्टी को नीचा दिखाने की गरज से ही सही बापू की अमानत को भारत लाए जाने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया, तब कहीं जाकर सरकार जागी, नहीं तो सरकार क्या अन्य राजनीतिक दलों को लोकसभा चुनावों में जीत की तिकड़म भिड़ाने को लेकर फुर्सत ही नहीं थी। चुनाव के लिए करोड़ों का बजट रखने वाले रोजाना लाखों रुपए के विज्ञापन अखबारों और चैनलों में देने वाले देश के इन सूत्रधारों के पास बापू की अमानत को बचाने के लिए एक फूटी कोड़ी नहीं थी॥ वह तो व्यस्त थे लोकसभा चुनावों के दौरान पड़ रहे आईपीएल के मैचों की मेजबानी दूसरे देशों के पास ना जाने देने के लिए॥और करोड़ों रुपए में खेलने के लिए... राष्ट्र की भलाई के नाम पर जनमानस को ठग कर अपने हितों के लिए करोंड़ों रुपए बनाने वाली किसी भी पार्टी में क्या इतना दम नहीं था कि गांधी के पड़पोते तुषार गांधी के धरोहर वापस लाने के लिए बनाए गए कोष में पर्याप्त धन एकत्र कर पाते। पार्टी के नाम पर करोड़ों रूपए पर खेलने वाले इन राजनीतिज्ञों को गांधी के कोष में नीलामी तक केवल साढ़े तीन लाख रुपए ही एकत्र होने की बात को लेकर लज्जित होना चाहिए... लेकिन फिर भी ये सीना ठोक कर कहते है हम गांधीवादी है, कोई इनसे पूछे की गांधी को मौत की नींद सुलाने वाले तो तुम हो, नाथूराम गोडसे नहीं, क्योंकि किसी इंसान की मौत शरीर के खत्म होने से नहीं बल्कि उसके विचारों के खत्म होने से होती है। सत्य, अहिंसा और राष्ट्रप्रेम के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले गांधी के ये समर्थक गांधीवादी तो है, लेकिन गांधी के विचारों पर चलने से इन्हे परहेज है और इसलिए अपने ही देश में गांधी अजनबी है...
Itna khulkar likhne ke liye hum sab reader aapke aabhari hain. Gandhi Darshan aur GandhiGiri ka dam bharne wale hum bhartiyoon ko thodi to sharm aani chahiye. Shayad ye chullu bhar pani mein doob marne wali baat jaisa hi hai.Jahan world mein log humare Gandhi ji ka naam lekar apne aapko dhany samjhne lagte hain, wahi par hum logo ko apne nizi swarthoon ko poora karne se hi fursat nahi milti hai.
ReplyDeleteAap humari sarkar aur Congress ki baat ko jane hi digiye. Satta mein baithi Congress ne aagami chunawoon ke liye Jai Ho song ke copy right kharidkar to bahut bada kaam kar diya hai. Unko to apni kursi hi sabse jayada pyari hai. Ab aap nahak hi paresan ho rahi hain. Waise bhi Chunawoon ke samay sabhi partiyoon ke paas Gandhi ji ko yaad karne ke liye samay hi kahan hai. Waise Malya ji ke is kaam ko main apni puri zindagi nahi bhool paunga.