बाकि ही क्या रह जाता गर.....उत्तर मिल भी जाते तो.....!!
और भी मुश्किल हो जाती गर....उत्तर मिल भी जाते तो ....!!
जिन्दगी बड़ी अबूझ रही.....इसीलिए हमने जी भी ली.....!!
वक्त से पहले मर जाते हम गर....उत्तर मिल भी जाते तो.....!!
हमने वक्त को पल-पल सींचा....पल-पल इक इंतज़ार किया
हर पल भारी-भारी हो जाता गर....उत्तर मिल भी जाते तो....!!
हर दुश्वार को आसां बनाना आदमी की ही अनूठी फितरत है
हर आसानी मुश्किल हो जाती गर उत्तर मिल भी जाते तो....!!
हमने मुहब्बत को अपनाया..और गाफिल सबों से प्यार किया
हम गाफिल भला कहाँ रह पाते गर...उत्तर मिल भी जाते तो...!!
यशवंत जी दूसरों के लिए तो सभी पत्रकारिता करते हैं. परन्तु पत्रकारिता के बारे में किसी को भी लिखने की कूबत नहीं है. ये जो पवित्र काम आप ने किया है. वह काबिले तारीफ है. पत्रकारिता में जितनी बुराइयाँ हैं उसकी खुलकर आलोचना की जानी चाहिए, आपकी जितनी भी सराहना की जाए वह कम है. आपका यह प्रयास सहस्त्र कंठों से सराहनीय है.
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