जाति धर्म से मोहभंग हुआ बिहारियों का................
बिहार ................ जहाँ के लोगों के बारे में आम धारणा थी की वहां के लोग जातियता को तवज्जो देते हैं। इसका नजारा भी आए दिन दिखाई देता था । इसके अलावा दुसरे प्रदेशों में भी जातियता का बोलबाला है। परन्तु बिहार के बारे में कुछ खास ही कहा जाता था। उदाहरणके तौर पे देखा जाए तो लालू जी की राजनीती ही जातियता के बलबूते पे फैली । लगातार जातिगत बातें सुनने को मिलता था । लालू जी जहाँ " माई " समीकरण अपनाते थे वही पासवान जी " दलित " के हितैसी होने की बातें करते थे। परन्तु धरातल की सचाई देखि जाए तो दोनों नेताओं ने और किसी जातिके लिए तो कुछ नही ही किया परन्तु जिसका हितैसी बन रहे थे उनकी भलाई भी नही कर पाये।
आजतक वे लोग लोगों को बेवकूफ बना के मंत्री पड़ हथियाते आ रहे थे, और भलाई या विकास का काम करना भूल जाते थे। परन्तु इस बार जनता ने उन्हें सबक सिखा दिया कि " विकास नही तो वोट नही "। उसी का नतीजा है कि जहा पासवान जी अपने गढ़ हाजीपुर में ही हार गए वही लालू जी जैसे दिग्गज नेता और मैनेजमेंट गुरु को भी हार का मुह देखना पड़ा।
लालू जी ने कभी पाटलिपुत्र से हार के बारे में सोचा भी नही होगा, परन्तु जनता ने अपना आक्रोस उन्हें वोट न देकर ब्यक्त कर दिया है। लालू जी जहाँ छात्रों को मैनेजमेंट कि पाठ पढाया करते थे वही लगता है कि वे ख़ुद इसका प्रयोग चुनाएव के दौरान करना भूल गए।
बिहार में विकास हो रहा है, चाहनुओरइसकी प्रसंसा भी हो रही है, उसी का नतीजा बिहार में लालू को चुकाना पड़ा। जिस लालू को जनता ने चुन कर फर्श से अर्श पे पहुचाया , ताकि वे विकास कर सके , परन्तु जब जनता ने देखा कि वे अपने विकास में ही लग गए तो इस चुनाव में जनता ने उन्हें अर्श से फर्श पे तो नही पर फर्श के काफ़ी नजदीक लाकर पटक दिया है, वही पासवान का पलीदा ही बाँध गया।
लालू हो या पासवान या भाजपा किसी ने पुरे देश के विकास कि बातें नही की। जिस कारण भाजपा केन्द्र में नही लौट सकी और द्वय नेताओं के पार्टियों कि हालत ही ख़राब हो गई।
इस चुनाव के जरिये जनता ने साफ़ संकेत दे दिए कि " हमे किसी जाति में मत बंधो, गरीबी दूर करो, विकास करो, देश का नाम करो " हम साथ हैं।
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