26.5.09

loksangharsha: छद्म पूँजी बनाम वास्तविक पूँजी-1

आज सारे भारत और विश्व में आर्थिक मंदी तथा संकट की चर्चा जोरो पर है । लेख लिखे जा रहे है ,भाषण/व्याख्यान और गोष्ठियाँ आयोजित की जा रही है । विश्व आर्थिक मंदी पिछले वर्ष (२००८) के मध्य में आरम्भ हुई और आज कई वर्षो तक जारी रहने की भविष्यवाणी की जा रही है । यह हमारे दैनन्दिनी के आर्थिक जीवन तथा जीवन-यापन से जुड़ी घटना है , इसलिए इसकी उपेक्षा नही की जा सकती है। यह किताबों और सिद्धानतो तक सीमित नही है। हमारे देश का अर्थतंत्र भी इसकी चपेट में आ रहा है।
आख़िर विश्व आर्थिक और संकट है क्या और इससे मुक्ति पाने या इसे कम करने के क्या उपाय है?

छद्म पूँजी बनाम वास्तविक पूँजी

कुछ समय पहले चीन के राष्ट्रपति ने कहा की वर्तमान विश्व आर्थिक संकट 'छद्म' पूँजी के उत्पादक पूँजी पर हावी होने के कारन पैदा हुआ। उन्होंने इस संकट से निजात पाने के लिए समूचे विश्व के देशो के परस्पर सहयोग का प्रस्ताव रखा है।
कुछ इसी तरह के विचार कुछ अन्य नेताओं ने पेश किए है। इनमें भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह भी है। उनके अनुसार आज 'कैसीनो 'पूँजीवाद उत्पादक का औद्योगिक पूँजीवाद पर हावी हो गया है । कैसीनो का अर्थ होता वह जगह जहाँ सट्टेबाजी होती है । उनके विचार में औद्योगिक पूँजी को एक और दरकिनार करने की कुछ राष्ट्रों द्वारा कोशिश की जा रही है।

छद्म पूँजी और मार्क्स -

छद्म पूँजी की अवधारणा सबसे पहले मार्क्स ने प्रस्तुत की थी जो उनकी रचना पूँजी के तीसरे खंड में मिलती है। जब हम पूँजी की बात करते है तो वह उत्पादन से जुड़ी होती है ,मुख्यत : औद्योगिक उत्पादन से। इसलिए मुनाफा भी उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान पैदा होता है ,उससे बाहर नही ,बाजार में नही ,वितरण में नही । यह सबसे बगैर हम वर्तमान संकट समझ नही सकते है यह सर्वप्रथम कार्ल मार्क्स थे जिन्होंने पूँजी और मुनाफे के स्रोत्र की खोज की थी । उसका स्रोत्र उन्होंने उत्पादन की प्रक्रिया ,विशेषत: श्रमशक्ति में खोज निकला था ।

-अनिल राजिमवाले

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