4.6.09

ऑस्ट्रेलियाई मूसल में हिन्दुस्तानी सर

-आवेश तिवारी
नस्लवाद का प्रतीक बनते जा रहे ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमले की खबरें इन दिनों सुर्खिया बनी हुई हैं दो चार दिनों में इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के और भी गरम होने के आसार हैं |क्रिकेट हो या पढाई ,नस्लवाद ऑस्ट्रेलिया के चरित्र का हिस्सा बन चूका है और हम सब ये सच्चाई जानते हैं |चाहे भारतीय चिकित्सकों को आतंकवादी करार देकर उन्हें प्रताड़ना देने का मामला हो ,खेल के मैदान पर हिन्दुस्तानी खिलाड़ियों को भद्दी गालियाँ देने की बात हो या फिर महज माह में ५०० हिन्दुस्तानियों को आपराधिक मामलो में जेल भेजने का ,हर जगह ,हर कहीं ,गंभीर रूप से नस्लवाद मौजूद रहता है |यहाँ हमारी इस पोस्ट में बात महज ऑस्ट्रेलिया और उसकी नस्लवादी नीतियों की नहीं होगी अपितु हम उन हिन्दुस्तानियों पर भी बात करेंगे जो खुद अपना सर मूसल में डालने को तैयार बैठे हैं ,,जी हाँ ,ये सच है की ऑस्ट्रेलिया जाने वाले ज्यादातर छात्र उन करोड़पति माँ बाप की संतान हैं ,जो अपने बच्चों को डॉक्टर इंजिनियर और विदेश में पढाई का तमगा दिलाने के लिए कोई भी कीमत देने का मादा रखते हैं ,आम आदमी का बच्चा ऑस्ट्रेलिया पढने नहीं जाता| उन्हें आज देश की याद आती है जब बाहर वाले उन्हें अपमानित करते हैं ,नहीं तो वो खुद को एन ,आर आई बनाने के लिए सारी कसरते कर रहे होते हैं |हमने आज जब अपने एक रिश्तेदार से सिडनी में पढ़ रहे उनके हमेशाथर्ड डिविजन पास होने वाले बच्चे का हाल चाल पूछा ,तो उन्होंने बच्चे का हाल कम बताया ,भारत सरकार की विदेश नीति की ऐसी की तैसी कर दी |एक ऐसे देश में जहाँ आज भी ४० फीसदी बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित हैं ,ऐसे देश में जहाँ उच्च शिक्षा के अवसरों को लेकर युद्घ की सी स्थिति है ,एक ऐसे देश में जहाँ खाली पेट किताबों से दोस्ती करने की ढेर सारी हानियां मौजूद हैं ,उस देश में चॉकलेट संस्कृति की उपज इन छात्रों के लिए रोने की कोई वजह फिलहाल मेरे पास तो मौजूद नहीं है |साथ ही मैं दो चार की संख्या में वहां मौजूद किसान परिवारों केलड़कों को लेकर भी मातम मनाने नहीं जा रहा ,जो अपने बाप -दादा की जमीन बिकवाकर विदेशी डिग्री लेने को लालायित हैं |हाँ हमें इस बात पर जरुर गहरा ऐतराज है की हिन्दुस्तानी छात्रों के नाम पर ,हिन्दुस्तान को अपमानित करने की कोशिश की जा रही है |ये पूरा मामला ऑस्ट्रेलिया के नस्लवाद के साथ साथ ,हमारे देश में गहरी जड़े जमा चुके शैक्षणिक नस्लवाद से भी जुडा है ,हमें इस विषय पर भी बात करनी ही होगी क्यूँकर वर्षों की तैयारी के बाद आई आई टी में असफल होने के बाद गरीब बाप का बेटा पल्लव पहले कॉलेज की सीढियों पर फूट -फूट कर रोता है ,फिर फांसी लगा लेता है |

ऑस्ट्रेलिया में हिन्दुस्तानी छात्रों पर हमले के बीच अब जबकि देश के लगभग सभी हिस्सों में १२ वीं कक्षा के परिणाम लगभग घोषित हो चुके हैं ,उन बिचौलियों और एजेंसियों के हाँथ पाँव फूले हुए हैं जो विदेश में अध्ययन के नाम पर यहाँ के अमीरों से भारी वसूली करते थे |दिल्ली की एक बड़ी एजेन्सी ने अपना घाटा होते देख ,बड़े समाचारपत्रों को भारी भरकम विज्ञापन देकर उनसे .नस्लीय हिंसा की ख़बरों को ज्यादा तरजीह देने की बात भी मनवा ली है ,वहीँ डोनेशन में ताबड़तोड़ छूट की घोषणाएं की जा रही हैं |आप यकीं मानिए पिछले साल ऑस्ट्रेलिया सरकार ने भारतीय छात्रों को लुभाने के लिए विज्ञापनों पर 35 लाख डॉलर खर्च किए थे।साथ ही हर साल भारत के छात्रों से ऑस्ट्रेलियाई सरकार को लगभग 8000 करोड़ रुपये हासिल होते हैंआज मंदी के इस भयावह दौर में वहां की अर्थव्यस्था का एक बड़ा हिस्सा विदेशी छात्रों की फीस से ही आना है |ऐसे में ये तय है कि अगर विदेशी छात्रों ने ऑस्ट्रेलिया से मुँह मोडा तो उनकी अर्थव्यवस्था चिन्न -भिन्न हो जायेगी ,मगर ये तय है हमेशा की तरह इस वर्ष मेभी हजारों छात्र लाखों खर्च करके विदेश पढने जायेंगे ,ये वे छात्र होंगे जिन्हें देश के प्रतिष्ठित संस्थाओं में प्रवेश पाने की योग्यता नहीं होगी ,लेकिन कल को वहां से पढ़कर आने वाला लड़का विदेशी डिग्री की चमक के साथ हमारे यहाँ के होनहार छात्रों के हांथों से सिर्फ अवसर छीन लेगा ,बल्कि उसे उठाकर पिछली पंक्ति में बैठा देगा |मेरी पत्रकार मित्र सोमाद्री शर्मा कहती हैं कि आस्ट्रेलियन सरकार गैरबराबरी का हथकंडा यहाँ भी अपनाती है ,जो छात्र ऊँची फीस देते हैं उन्हें तो सीधे प्रवेश देदिया जाता है लेकिन इंडो-आस्ट्रेलियन शैक्षणिक सहयोग के तहत निर्धारित मुफ्त सीटों के लिए प्रवेश परीक्षा इतनी कठिन कर दी जाती है कि उनमे से ज्यादातर छात्र फ़ेल हो जाते हैं ,अनियमितता का आलम ये है कि पिछले कई वर्षों से इन मुफ्त सीटों को भरा ही नहीं जा रहा है चूँकि देश के कई बड़े नेताओं के नाते रिश्तेदार भी वहां पढ़ रहे हैं इसलिए इस गंभीर मसले पर सभी ने अपने होंठ सी रखे हैं |
लगातार अपमान सहने और लात घूंसा खाने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीयों की बेशर्मी देखिये ,भारतीय समुदाय ने रविवार एक बैठक करके आस्ट्रेलियन सरकार का पक्ष लेते हुए कहा कि ऑस्ट्रेलिया को नस्लभेदी देश करार देने में जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए ,यहाँ सरकार को इस समस्या से निबटने का मौका देना चाहिए ,पूर्व भारतीय काउंसलेट जनरल टी,जे राव ने कहा कि ये मामला नस्लभेद का नहीं है बल्कि भारतीय छात्रों की रक्षा का है ,४० सालसे ऑस्ट्रेलिया में रोटी तोड़ रहे राव महोदय का कहना है कि मेरे साथ जब कभी गैरबराबरी का भेदभाव नहीं किया गया | सिडनी में रहने वाले एक चिकित्सक ने तो कहा कि ऑस्ट्रेलिया नस्लभेदी नहीं है भारतीयों पर जो हमले हुए वे सभी नस्लभेदी नहीं हैं ,शायद ये लोग वहां पढ़ रहे भारतीय छात्रों की हत्याओं का इन्तजार कर रहे हैं ,या फिर लाख अपमान के बावजूद गोरी चमडी के बीच रहने के सुख को वो छोड़ना नहीं चाहते |भारत में ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर जोनमाइक क्रथि ने इस पुरे मामले पर ये कहकर कि विश्व में हर जगह किसी किसी रूप में नस्लवाद मौजूद है ,अपनी सरकार की सोच जगजाहिर कर दी है ,मौजूदा समय में आस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री केविन रूड अगर बगले झांकते नजर रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि उन्हें अपने देश के चरित्र पर से नकाब उतरने का भय है |
अभी पिछले दिनों सुरक्षा का हवाला देते हुए ऑस्ट्रेलियाई टीम ने चेन्नई में होने वाले डेविस कप में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। इसके पूर्व कई बार सुरक्षा उपायों का हवाला देकर ऑस्ट्रेलिया बार बार अपने क्रिकेट दौरों में परिवर्तन करता रहा है ,pichhle रविवार को नस्लीय विवाद के बाद भारतीय छत्रों द्वारा शांति मार्च निकाला गया था इस रैली के बाद ऑस्ट्रेलियाई पुलिस ने 18 छ्त्रों को हिरासत में ले लिया था। पुलिस ने भारतीय छात्रों पर लाठियां बरसाई और हालात यह थे कि एक छात्र को छह-छह पुलिस वाले घेरे हुए थे। इन छात्रों को पुलिस ने हिंसा फैलाने के नाम पर हिरासत में लिया। रैली के दौरान पुलिस ने छ्त्रों पर लाठी चार्ज किया और उन्हें बुरी तरह घसीट कर ले गई।ये इन्तेहाँ है ,मगर अफ़सोस अपमान के बावजूद हम ऑस्ट्रेलिया को लेकर कोई नीति तय नहीं कर पाए |अगर यही हाल किसी एक दो आस्ट्रेलियन नागरिकों के साथ यहाँ भारत में हुआ होता तो वहां की सरकार कब का अंतर्राष्ट्रीय लोबिंग के साथसाथ अपने नागरिकों को भारत छोड़ने का फरमान जारी कर चुकी होती | जरुरत इस बात की है कि पहले भारत सरकार अपना राजनयिक अभियान तेज करते हुए ऑस्ट्रेलिया सरकार से हमलावरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गारंटी के साथ साथ ऐसी घटनाओं की पुनरावृति होने का आश्वाशन ले ,वहीँ तब तक अपने सभी नागरिकों को वापस भारत बुलाना सुनिश्चित करे ,अगर ऐसा नहीं होता तो भारत को तात्कालिक तौर पर ऑस्ट्रेलिया से सभी प्रकार के राजनयिक सम्बन्ध भी ख़त्म कर लेने चाहिए साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ में इस प्रकरण को उठाना चाहिए , आई सी सी में भी यह पूरा मामला उठाकर क्रिकेट में भी ऑस्ट्रेलिया पर प्रतिबन्ध लगाये जाने की मांग की जानी चाहिए |क्यूंकि आस्ट्रेलियन क्रिकेट भी पूरी तरह से रंगभेद का प्रतिक बन चूका है लेकिन इन सबसे पहले जरुरी ये है कि पैसों के बल पर अपने बच्चों का भविष्य तैयार करने में लगे अभिभावक अपनी जमीन पहचाने ,सरकार को भी चाहिए कि आरक्षण और आश्वाशन कि राजनीति छोड़कर उच्च शिक्षा के अवसरों में तात्कालिक तौर पर बढोतरी के उपाय करे ,नहीं तो मंदी के इस दौर में वो दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया से हमें खदेडा जाएगा |

3 comments:

  1. bilkul sahi likha hai.aapne kafi gahari aur barik baten likh di.dhanyavaad.is visay par tensionpoint.blogspot.com bhi dekhen.

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  2. ऑस्ट्रेलिया में भारतियों के साथ आज जो भेदभाव हो रहा है उसे हम नस्लवाद का नाम देकर एक बहुत बड़ा मुद्दा बना रहे हैं| अमिताभ बच्चन ने ऑस्ट्रेलिया के एक विश्वविद्यालय द्वारा दी जाने वाले सम्मान को यह कहा कर ठुकरा दिया कि मैं उस देश से किसी भी तरह का कोई सम्मान ग्रहण नहीं करूँगा जो हमारे देश के लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर सकता| वहीँ आमिर खान ने भी इस मुद्दे पर अपनी टिप्पणी दी| किन्तु नसलवाद क्या केवल वही है जो किसी दूसरे देश के लोग हमारे देश के लोगों के साथ कर रहे हैं| क्यों हम झल्ला जाते हैं जब कभी भी ऐसी कोई घटना घटती है| आगे पढने के लिए लिंक पर जायें........ http://aawazein.blogspot.com/2009/06/blog-post_01.html

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  3. kya karen... phir bhi ab tak kisi hindustani ki nind nahi khuli

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