12.6.09

नस्लीय हिंसा पर प्रताप ने की थी सिंह गर्जना

‘‘जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर-पशु निरा है, और मृतक समान है।।’’
ये पंक्तियाँ प्रसिद्ध ऐतिहासिक समाचार पत्र ‘प्रताप’ की ध्येय वाक्य थीं। ये पंक्तियाँ योद्धा पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी जी के निवेदन पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने लिखीं थी। इन पंक्तियों से ही पता चलता है कि प्रताप कैसा अखबार रहा। प्रताप एक राष्ट्र प्रहरी की भूमिका में था। इस बात को इस तरह समझा जा सकता है कि आस्ट्रेलिया में हो रही नस्लीय हिंसा के विरोध में इतना कठोर आज के किसी भी अखबार ने नहीं लिखा जितने 1913 में दक्षिण अफ्रीका नस्लीय हिंसा का शिकार हो रहे भारतीयों की दुर्दशा को देखकर प्रताप में विद्यार्थी जी ने लिखा था।
अपने दूसरे ही अंक ‘‘प्रताप’’ के खुल तेवर के साथ, सिंह सी तरह गर्जना करके लिखा। 16 नवम्बर 1913 के सम्पादकीय अंगलेख ‘‘निरंकुशता’’ मे विद्यार्थी जी लिखते हैं- ‘‘इस समय दक्षिण अफ्रीका में डेढ़ लाख हिन्दुस्तानी हैं। इनमें पांचवा हिस्सा ऐसे हिन्दुस्तानी का है, जो कुली बनकर नहीं, बल्कि वैसे ही वहां जा बसे। हमारे देश भाइयों ने खूब परिश्रम किया और उससे वे फले-फूले। गोरों की आंखों में उनकी उन्नति बेतरह खटकी। गत शताब्दी के पिछले हिस्से में वे इस बात की सिर तोड़ कोशिश करने लगे कि किसी तरह भी हो, न्याय से या अन्याय से, इन कालों को इस भूमि से निकाल बाहर करना चाहिए।’’

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