16.6.09

इक उम्मीद...






















इक उम्मीद पे टिका है सारा जहां
उम्मीद है तो फिर है अंत कहां

उम्मीद है तो नींदों में ख़्वाबों का बसेरा है
उम्मीद के साथ कुछ ढूंढने निकलो तो पूरा संसार तेरा है

ग़र उम्मीद है तो कैसी भी कोई भी हद नहीं
ग़र उम्मीद है तो आसमां से आगे भी सरहद नहीं

उम्मीद पाने से पहले, उम्मीद खोने के बाद भी
उम्मीद हर मुस्कान में, उम्मीद रोने के साथ भी

उम्मीद है तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है
वो होगा नहीं नाउम्मीद कभी जिसे ख़ुद पे यकीं है

इक उम्मीद से हर दिन नया सूरज निकलता है
उम्मीद से धरती घूमती है, रात दिन में बदलता है
और उम्मीद से ही काले-स्याह आसमान में चांद भी आगे चलता है

क्योंकि इक उम्मीद पे टिका है सारा जहां
उम्मीद है तो फिर है अंत कहां


- पुनीत भारद्वाज
http://teer-e-nazar.blogspot.com/

1 comment:

  1. puneetji,
    waah waah
    aapne umda rachna..behtreen post se rubru karaya,
    dhnyavaad !

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