21.6.09

जिन्दगी मेरी, मेरे हाथ न रही.....

सब दोस्तों को मेरा नमस्कार। यूँ तो पैदायसी लेखक नहीं हूँ बस यूँ ही देश काल को लेकर बचपन से सोच रहा हूँ, जब से थोडी समझ दारी आई। नतीजा यह हुआ की पत्रकार बन गया। आज ४० साल का हो रहा हूँ तब पीछे मुड़कर देखने पर लगता है की बहुत पीछे छूट गया हूँ। खैर, जो हुआ सो हुआ। अब कुछ आज कल के दौर पर। ब्लॉग जैसी चीज ने एक नया आसमान दे दिया है, विचारों को व्यक्त करने का मंच। अपने बारे में फिलहाल इतना ही

जिन्दगी मेरी, मेरे
हाथ न रही
मैं पतंग बन गया,
आसमान पर चाहा खूब उड़ना
पर डोर टूट गई
कभी परिवार, कभी रोजगार
हर कदम पर हूँ लाचार
उडाना चाहो तो उदा सकते हो
मजाक मेरा, हाँ तुम भी बन सकते हो मजाक कभी
दरअसल वक्त किसी का नहीं होता
दाढ़ी बाबा यही कहते थे।
एतबार नहीं हो तो आज का प्रभात ख़बर देख लो
हरवंश जी ने यही लिखा है उन किताबों के लिए
जिन्होंने बदल दी दुनिया।


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