हे मर्द, तुमने क्या कहा?
ज़रा दुहराना तो
तुमने कहा- हम औरतें, कोमल हैं,
कमज़ोर हैं!
लाचार हैं साथ तुम्हारे चलने को,
हमारा कोई अस्तित्व नहीं है
बगैर तुम्हारे!
तुम्हारी इन बातों पर,
बचकानी सोच पर,
जी करता है खूब हँसू…….!
सोचती हूँ, कैसे बोलते हो तुम ये सब?
कहीं तुम्हे घमण्ड तो नही
अपनी इस लम्बी कद-काठी का,
चौड़ी छाती का जहाँ कुछ बाल उग आए हैं….!
सच में, अगर घमण्ड है तुम्हें
इन बातो का तो ज़रा सुनो मेरी भी-
तुम मर्दो का आज अस्तित्व है
क्योंकि
किसी औरत ने पाला है
तुम्हे नौ महीने अपने पेट मे !
लम्बी कद-काठी है
क्योंकि
तुम्हारी कुशलता के लिए
प्रयासरत रही है
कोई औरत हमेशा !
छाती चौडी है
क्योंकि
पिलाई है किसी औरत तुम्हे छाती अपनी !
अब सोचो,
फिर बोलो,
कौन लाचार है ?
किसका अस्तित्व नहीं, किसके बगैर?
-विकास कुमार
kya baat hai mere bhai sach me bahot dard hai teri kalam me`
ReplyDeletesach puri bhadas nikal lena