यूं तो किलर ब्लू लाइन बसें अपनी अपराधी गतिबिधियों के लिए कुख्यात हैं। कहीं तेज चलती ब्लू लाइन बसों के नीचे कई मासूम लोग दले जाते है तो कहीं आम आदमी ब्लू लाइन के गुण्डों का शिकार बनता है। ऐसा ही कुछ धौला कुँआं से नोयडा जाने वाली रूट नम्बर ३२३ बसों में देखने को अक्सर मिल जाता है। गौरतलब है कि इसी रूट पर डी टी सी की ३९२ नम्बर बस चलती है मगर ब्लू लाइन के इसारे पर। एक तो ब्लू लाइन बस औपरेटर डी टी सी की बसों को स्टैंड पर आने ही नहीं देते, और यदि आ ही जाए तो उसे समय पर चलने नहीं देते।
हां, इस रूट पर वही डी टी सी स्टाफ कामयाब है जो या तो भ्रष्ट हो या फिर हिम्मत बाला हो। मगर अक्सर हिम्मत बाले कम ही होते है और ब्लू लाइन के हाथों बिक जाते हैं।
इन दो पाटों के बिच में पिसता है तो बह है आम आदमी। कभी डी टी सी बस समय पर नहीं चलती अगर चलती है तो ब्लू लाइन बसों के कुछ गुण्डे डी टी सी बस में चढ कर चालक को अपने इसारे पर चलाते है। डी टी सी के चालक कभी स्टैंड पर बस रोकते ही नहीं हैं या फिर ब्लू लाइन के गुण्डों के इसारे पर इतने धीरे चलाते हैं के जनता परेशान हो जाती और समय पर काम पर नहीं पहुंच पाती। यदि कोई बस में बिरोध करता है तो ब्लू लाइन के गुण्डों के कोप का भाजन बनता है। इस सम्बन्ध में मीडिया में कई बार खबरें छप चुकी हैं मगर विभाग कुम्भकर्णी नींद सो रहा है। यही कारण है कि डी टी सी का घाटा दोगुना सो ऊपर चला गया है। लोगों का मानना है कि जिस दिन ब्लू लाइन बसें दिल्ली में बन्द हो जाऐंगी दिल्ली का आधा अपराध कम हो जाएगा। अगर पब्लिक ट्राँसपोर्ट सेवा सही से काम करेगी तो दिल्ली के बढते ट्रैफिक को भी सीमित किया जा सकता है।
ध्यान देने योग्य बात ये भी है कि ३२३ नम्बर रूट की बस के पास नोयडा ६२ सैक्टर जाने का परमिट भी नहीं है मगर फिर भी पुलिस से मिलिभगत होने से सब बेधडक चल रहा है। डी टी सी बसों को न चलने देने का तामशा रोज शाम को नोयडा के सैक्टर ६२ के बस स्टैण्ड पर देखा जा सकता है। गौरतलब हो कि नोयडा में प्रवेश करते ही ब्लू लाइन के कन्डक्टर जो एक बस में ६ से ७ हो सकते हैं खुंखार अपराधियों की तरह बर्ताब करना शुरु कर देते हैं जिससे की नोयडा प्रशासन भी शक के घेरे में आ जाता है।
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