यह तुम्हारा जाना महज जाना नहीं है
यह भरोसे का कत्ल है यारा
किससे सांझी करे मन की पीर
एकाकीपन पूछता है सवाल सैकड़ों
अपने आप से लड़ना भी होता है खासा दुष्कर
वादे, कसमें, प्रतिबद्वता हुए बेमानी
तुमसे वफा बेमानी सी थी
पैसा, पद यही तो है जिंदगी
पेशेवराना बाजार में हम जैसों की कीमत क्या है
किसे दे जवाब,सफाई मांगता है हर कोई
तू अपना था, हमसफर सा था
कोई चूक हुई मेरे स्नेह दान में
वरना कल की सोच में मुझे शुमार करने में हर्ज ही क्या था----------
Posted by -यशपाल सिंह मेरठ
http://tirandaj.blogspot.com/
waah waah
ReplyDeletekya baat hai !