एक पत्रकार , दूसरा बेकार
दोनों में कोई अंतर नहीं
फर्क है तो बस सोच का
सोच चिंता की,
चाहत की,
एक को खोने की चिंता,
दूसरे को पाने की,
लेकिन दूसरे को पता नहीं
अगर उसे मिल भी गया
तो एक दिन खोएगा
और अगर फ़िर भी मिल गया तो
फ़िर दूसरा
बन जाएगा पत्रकार
और पहला बेकार।
शशि शेखर
(एक पत्रकार पहली बार कवियाया है)
bhut achchhi lagi aap ki ye rachna
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteलेकिन शशि जी,
ReplyDeleteकिन्ही भी हालातो में पत्रकार तो जिन्दा ही है, कभी पहले के रूप में तो कभी दूसरे के रूप में...
मतलब हम और आप तो आते जाते रहेंगे मगर पत्रकार और पत्रकारिता जिन्दा रहेगी, अभी भी जिन्दा है,
हालाकि आपको ये कहना कि किन हालातो में जिन्दा है, छोटा मुह और बड़ी बात होगी...