30.6.09

मन करता है

इस जंगल को छोड़कर
गांव जाने का मन करता है
ढहाकर दडबानुमा इमारत
घर बनाने का मन करता है

देखता हूं हर तरफ
सब भाग रहे हैं बेतहाशा
तेरी गोद में आकर अम्मा
सुस्ताने का मन करता है

चंद लोगों की मुट्ठी में
सारे सिक्के सारी ताकत
ऐसे लोगों की बस्ती में आग
लगाने का मन करता है

भविष्य देश का लिए कटोरा
लालबत्ती पर खड़ा है
उनके हाथों में कलम
थमाने का मन करता है

उखाड़ने को आतुर हैं जो
तानाशाही सरकारें
उनके दिलों में अब शोला
भड़काने का मन करता है

चकाचौंध इस शहर की
आंखों में चुभने लगी हैं
हमेशा के लिए अब इसकी
बत्ती बुझाने का मन करता है...

भागीरथ

3 comments:

  1. bahut hee snudar aur aaj ki mukamal sachai ko samne lati kavita hai....

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  2. बेहतरीन सर। आपकी तरह मेरा और बहुत लोगों का मन ऐसा ही करता है-
    हर रंग चढ़ जाता है जब मैं घर जाता हूं
    माँ की रोटी का असर आता है जब मैं घर जाता हूं।।

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  3. roj raat teri god ko
    tarasta hun maa
    tere narm hathon se
    bani garam rotiyon ko
    tarasta hun
    teri pyaar bhari daant ko
    aur daant bhari pyaar ko
    tarasta hun
    maa jab bhi akela hota hun
    tere pyaar ko tarasta hun

    aapki kavita bahut pasand aayi aur in char lino lo likhne ke liye majboor kar diya...

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