सेवा में,
परिवहन मन्र्ति
दिल्ली
विषयः ब्लू लाइन की बढती गुण्डागर्दी और डी टी सी का बढता निठल्लापन
महोदय,
मुझे यह जान कर बहुत खेद हुआ कि डी टी सी का घाटा दोगुना से ज्यादा हो गया है। मगर शायद इस बात पे ध्यान नहीं दिया गया कि ऐसा क्यों हो रहा है। मैं आपको बताना चाहुंगा कि ब्लू लाइन की बढती गुण्डागर्दी और डी टी सी का बढता निठल्लापन ही इसका मुख्य कारण है। अगर आप ब्लू लाइन बसों की हालत देखें तो यह तो बद से बद्दतर है ही मगर इन्होंने डी टी सी को दागी और भ्रष्ट बना दिया है। डिपो से डी टी सी बसें एकदम ठीक आ जाती हैं मगर स्टैण्ड पर पहुंचते ही कागज़ों में 'बस खराब है' लिख दिया जाता है और आधे एक घण्टे से डी टी सी बस का इन्तज़ार कर रहे लोगों को परेशानी का सामना करना पडता है। यह कोइ एक दिन की बात नहीं बल्कि आए दिन ऐसी घटनाऐं देखने को मिलती हैं। नीचे दिए गए कुछ मुख्य पवाइंटस दिल्ली की यातायात व्यवस्था पर पश्न चिन्ह लगाते हैं। पहले ब्लू लाइन से शुरू कर रहा हूं -
१ - ब्लु लाइन बसों की जर्जर स्थिति - ब्लू लाइन बसों की स्थिति दयनीय है कि उन में बैठने को दिल नहीं करता मगर मजबूरी मैं लोगों को जाना पडता है। जाने ये बसें पास कैसे हो जाती हैं।
२ - असभ्य वर्ताब - ब्लू लाइन बसों के संवाहक बस को तब तक भरते रहते हैं जब तक कि सवारी से सवारी का शरीर न मिल जाए। कई बार तो यात्रीयों को गेट पे लटका कर ले जाते हैं। इस बीच यदि कोई उन्हे टोक देता है तो वे गन्दी गन्दी गालियां देना शुरू कर देते हैं या फिर बस से तुरन्त उतर जाने को कहते हैं मगर मजबूरी में यात्री कुछ भी नहीं कर पाते। एक बस में ज्यादा से ज्यादा ५२ सीटें होती हैं मगर बस में सफर कर रहे यात्रीयों के संख्या सीटों से दोगुनी होती है। क्या प्रशासन किसी बडी दर्घटना होने का इन्तज़ार कर रहा है? पैसे देकर भी लोग गालियां सुन रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि ये प्रशासन उनकी मदद करने की बजाए उल्टा उन्हें ही तंग करेगा।
वास्तव में ब्लू लाइन के कन्डक्टर जो एक बस में ६ से ७ हो सकते हैं, गुण्डे हैं जो दिल्ली में आतंक मचाने कि लिये जाने जाते हैं।
३ - रिश्वत - हलांकि ये बात जगजाहिर है कि ब्लू लाइन आपरेटरस डी टी सी के कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक रिश्वत देते हैं उनका रास्ता साफ रहे और कोई डी टी सी बस उनके पीछे न चले। अगर कोई बस पीछे चलती भी है तो उस में ब्लू लाइन के एक या दो बन्दे (गुण्डे) डी टी सी बस में चढ जाते हैं और ड्राइवर हो अपने निर्देशानुसार चलाते हैं। यदि कोई यात्री इसका विरोध करता है तो उसे जान से मार देने की धमकियां दी जाती हैं। यह सब मैं इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि ये सब में खुद भुगत चुका हूं।
४ - धूम्रपान - यूं तो सरकार ने नियम बनाया है कि पब्लिक पलेस में धूम्रपान करना अपराध है मगर ये ब्लू लाइन के बस ड्राइवर कहां मानते हैं। अगर कोई बीच में टोकता है तो उनके कोप का भाजन बनता है। स्थिति तो तब और सोचनीय हो जाती है जब पुलिस वाले अपराधी को पकडने की बजाए शिकायत करने वाले को ही फंसा देती है। आम आदमी तो पुलिस के पास जाने से भी डरता है।
ये तो बात हुई भयानक ब्लू लाइन बसों की अब चलते हैं डी टी सी की कारगुजारियों की ओरः
१ - कोई समय सारणी नहीं - पेपरों में तो डी टी सी हमेशा समय पर चलती है मगर वास्तिक्ता तो कुछ और ही है। डी टी सी बस के ड्राइवर और कण्डक्टर ही मानो बस के मालिक होते है बे जब चाहे बस रोके, जब चाहे चलाएं या फिर जब चाहें बस को खराब बता कर यात्रियों को कहीं भी उतार सकते हैं।
२ - रिश्वत का चलन - मैंने कई बार डी टी सी बस ड्राइवरों और कण्डक्टरों को ब्लू लाइन वालों से रिश्वत लेते देखा है दु्र्भाग्य से मेरे पास कैमरे वाल मोवाइल नहीं है नहीं तो मैंने विडियो बना लिया होता। एक डी टी सी ड्राइवर से बात होने पर उसने बताया की अगर वे उनके दिये पैसे नहीं लेते तो उन्हें मारने की धमकी दी जाती है और अगर वे ये बातें अपने अधिकारियों को बताते हैं तो वे ब्लू लाइन वालों से न उलझने के सलाह देते है, फिर हम क्या कर सकते है। उसने बताया जब हमारे साहब लोग ही पैसे लेते हैं तो हम क्यों नहीं ले सकते।
३ - शिकायत पुस्तिका नहीं - जब कभी कोई यात्री डी टी सी कण्डक्टर से शिकायत पुस्तिका मांगता है तो वह कहता है कि हमारे पास शिकायत पुस्तिका होती ही नहीं है।
४ - घटिया हेल्पलाइन - यदि कोई यात्री भूल से भी डी टी सी हेल्पलाइन १८०० ११ ८१८१ पर फोन कर दे तो उसे कोई सपष्ट जबाव नहीं मिलता। डी टी सी हेल्पलाइन में बैठे व्यक्ति यहां तक कहते हैं कि भइया डी टी सी का तो भगवान ही मालिक है। हम कुछ नहीं कर सकते। उनकी रूखी आवाज़ यात्रियों को और ज्यादा परेशान कर देती है।
५ - बिके हुए टिकेट का दुबारा प्रयोग - यह वो सच्चाई है जो किसी के भी रोंगटे खडे कर सकती है। टिकट बिक जाने पर डी टी सी के कण्डक्टर स्टैण्ड आने पर आगे वाले गेट पर चले जाते हैं और टिकेट चेक करने के बहाने उनसे टिकेट लेकर आगे चढने वाले यात्रियों दे दिए जाते है। यह समस्या रूट नम्बर ३९२ पर ज्यादा देखी जा सकती है।
६ - डी टी सी बसों के कमी - हलांकि अगर डिपो में देखा जाए हो कई बसें बेकार में वहां खडी मिलती हैं मगर रोड पर बहुत कम। १५ मिनट से ३० मिनट के अन्तराल पर डी टी सी बस सेवा है कई बार तो १ घण्टा भी यात्रियों को इन्तजार करना पडता है। इससे डी टी सी की इमानदारी पर तो शक होना लाज़मी है। चाहे कुछ भी हो जनता डी टी सी से एक अच्छी सेबा की उम्मीद लगाऐ बैठी है।
७ - बसों में भीड - चाहे ब्लू लाइन हो या डी टी सी सभी बसों में इतनी ज्यादा भीड होती है कि बिमार आदमी, गर्भवती स्त्रीयां, बच्चे बाली औरतें और बूढे लोगों का सफर करना दूभर हो जाता है। ४२ सीटों वाली बस में १०० के लगभग यात्री हो सकते हैं। यदि दुर्घटना होती है तो आप समझ सकते हैं कि ये कितनी भयानक हो होगी।
दिल्ली (NCR) के यातायात की जो व्यवस्था अभी है वह २०१० में होने वाले कामनवेल्थ खेलों पर डालेगा। नीचे कुछ ऐसे सुझाव दिये जा रहे है जिससे दिल्ली (NCR) की यातायात व्यवस्था कुछ हद तक सुधारी जा सकती हैः
१ - डी टी सी के स्टाफ को ब्लू लाइन के गुण्डों से सुरक्षा दी जानी चाहिए ताकि वे उनके दवाब में आकर गाडी न चलाऐं।
२ - बस की समय सारणी बस के बाहर गेट पर लिखी रहनी चाहिए ताकि जनता को बस के टाइमिंग का पता रहे और डी टी सी के स्टाफ गाडी समय पर ही चलाए।
३ - हर ५ से १० मिनट के अन्तराल पर डी टी सी की बस सेवा होनी चाहिए ताकी यात्रियों को कोई परेशानी न हो।
४ - डिपो से निकलने से पहले हर डी टी सी बस चेक होनी चाहिए ताकि ड्राइवर बस खराब होने का बहाना न बना सकें।
५ - भ्रष्टाचार के केस में जो कोई भी पकडा जाए, उसकी सेवाएं तत्काल प्रभाव से खत्म कर दी जानी चाहिए ताकी उन पर जो सरकारी कर्मचारी होने का भूत है उतर जाए।
६ - ब्लू लाइन बसों को जल्द से जल्द बन्द कर दिया जाना चाहिए क्यों कि डी टी सी में भ्रष्टाचार का मुख्य कारण ब्लू लाइन ही है।
७ - राजनेताओं की बसें पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए प्रयोग नहीं होनी चाहिए इससे भी भ्रष्टाचार फैलता है इसमें कोई शक की गुंजाइस ही नहीं।
८ - जो भी जनशिकायत हो उसका सही ठंग से उचित (लिखित में) जबाव दिया जाना जाना चाहिए ताकि लोग सरकारी काम पर भरोसा कर सकें।
उपरोक्त दिए गए सुझावों को अगर सरकार लागू करती है हो निश्चित ही दिल्ली (NCR) में यातायात व्यवस्था सुधरेगी। अगर सरकारी बसों की सेवा सही हो जाए तो लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करेंगे। सरकारी बसों की सेवा सही न होने की बजह से ही दिल्ली में यातायात बढा है।
सुशील कुमार पटियाल
मसलेहत* तो कर ले वक़्त से लेकिन (समझोता)
ReplyDeleteक्या यही मेरी जिंदगी का फैसला होगा
मस्लेह्तों मैं ही कट जाएगा लम्हा लम्हा
या खुदा फिर मेरे अरमानो का क्या होगा?
शादाब* बेलें सूख जाएगी दिली फैसलों की जिस दिन (हरी)
उस दिन मेरा ज़मीर बड़ा खफा होगा
किसी इमाम* की तकसीम** ही क्यों किस्मत हो मेरी?(अगुआ)(** सलाह)
यही हालात रहे तो इक दिन मेरे ख्यालों क "लम्हे शरार"* का जनाजा होगा (चिंगारी)