24.6.09

चमचा में गुन बहुत हैं सदा राखिये संग, कांग्रेस रोती फिरे सामन्ती के संग

-नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''-

अभी हाल ही में एक खबर पढ़ने में आयी कि कांग्रेस ने राजे रजवाड़े या सामन्ती प्रतीक नाम उल्लेखों के उपयोग पर रोक लगा दी है ! खबर ठीक है, और लगता है कि कांग्रेस देश में आधे अधूरे लोकतंत्र को या राजतंत्र के बदनुमा दागों को साफ कर साफ सुथरा परिपक्व लोकतंत्र लाना चाह रही है ! साधारण बुध्दि के हर व्यक्ति को यही आभास होगा ! मैंने इस पर चिन्तन किया ! मुझे इसलिये भी विचार करना पड़ा कि मेरा खुद का सम्बन्ध भी रजवाड़े से है और यह अलग बात है कि जो असल रजवाड़े या राजपूत हैं वे आमतौर पर किसी भी सामन्ती नामोल्लेख को नहीं करते ! असल राजा और राजवंश अधिकतर न तो आमतौर पर कुंवर, राजा या महाराजा या अन्य ऐसा कुछ लिखते हैं बल्कि सीधे सपाट अपना नाम लिखते हैं ! भारत में राजपूतों व रजवाड़ों में अपने उपनाम को साथ लिखने का सामान्य तौर पर रिवाज है जैसे मैं तोमर हूँ और तोमर राजवंश का प्रतीक उपनाम तोमर जो कि मुझे जन्म से ही मिला हुआ है अब भई इसे मैं कैसे छोड़ सकता हूँ !

अब तोमर राजवंश ने दिल्ली बसाई, महाभारत जैसा महान युध्द लड़ा, इन्द्रप्रस्थ निर्मित किया, महाराजा अनंगपाल सिंह ने दिल्ली में लालकोट बनवाया, लोहे की कील गड़वाई (लौह स्तम्भ) या सूरजकुण्ड हरियाणा में ठुकवा दिया या ऐसाह में गढ़ी बसाई या महाराज देववरम या वीरमदेव ने ग्वालियर पर तोमर राज्य स्थापना की तो इसमें मेरा क्या कसूर है ! अगर पुरखों को पता होता कि सन 2009 में जाकर उनके वंशजों को उनके कुकर्मों का दण्ड भोगना पड़ेगा और अपने होने की पहचान खत्म करना पड़ेगी और तोमर होना या कहलाना एक राजनीतिक दल विशेष के लिये अयोग्यता हो जायेगी या भारतीय जीवनतंत्र में उन्हें बहिष्कृत होना पड़ेगा तो वे काहे को ससुरी दिल्ली बसाते काहे को राज्य संचालन करते काहे को महाभारत लड़ते और काहे को इस भारत की सीमाये समूची एशिया तक फैलाते ! काहे को भगवान श्रीकृष्ण के वसुदैव कुटुम्बकम सिध्दान्त पर अमल कर अमनो चैन का शासन करते !

अब कुछ लग रहा है कि पुरखों ने दिल्ली बसा कर ही गलत कर दिया न दिल्ली होती न देश में टेंशन होता ! दिल्ली की वजह से पूरे देश में टेंशन है ! खैर चलो अच्छा हुआ कि हम किसी सामन्ती लफ्ज का इस्तेमाल नहीं करते, चलो अच्छा है कि हम कांग्रेस में नहीं है, अब तो भविष्य में भी नहीं जाना है, नही ंतो पता चलेगा कि चौबे जी छब्बे बनने गये थे और दुबे बन कर लौट आये यानि रही बची नाक और दुम कटा कर नकटा और दुमकटा भई हमें तो नहीं बनना ! ना बाबा ना ! कतई ना !

खैर यह कोई नई बात नहीं कांग्रेस ऐसे औंधे सीधे काम पहले से ही करती आयी है उसके लिये भगवान श्री राम एक काल्पनिक व्यक्ति थे, महाभारत एक काल्पनिक युध्द था ! होगा भई होगा कांग्रेस के लिये होगा, हमारे तो पुरखों ने लड़ा है सो भईया हम तो मानेंगे, मानेंगे मानेंगे !

चलो हमारी बात हम तक ठीक है वह तो खैर है कि भारत के कुछ राजपूत अपना उपनाम नहीं लिखते जैसे उ.प्र. के कुछ हिस्सों में कई राजपूत महज सिंह लिखते हैं यही हाल कुछ और प्रदेशों में भी है !

मेरे ख्याल से टाइटलिंग अक्सर वे करते हैं जो जनाना चाहते हैं और जताना चाहते हैं कि वे किसी राजघराने से हैं या राजपूत हैं या दो नंबर के राजपूत हैं (दो नंबर के राजपूत- यह राजपूतों का कोडवर्ड है भई इसका अर्थ है गुलाम राजपूत या मीठा पानी या जिनके खानदान में गड़बड़ आ गयी है) या नकली या फर्जी राजपूत जिन्हें बताना पड़ता है कि वे राजपूत हैं या वे कहीं के राजा रहे हैं ! कांग्रेस में कुछ ज्‍यादा ही नकली और फर्जी राजे रजवाड़े हैं जिनका काम स्‍वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों का साथ देना और उनकी चमचागिरी व जी हुजूरी करना ही था (हम नहीं कहते भारत का इतिहास कहता है) इन लोगों ने भारतीय स्‍वतंत्रता सेनानीयों और क्रान्तिकारीयों की अंग्रेजों के साथ मिलकर या उनका साथ देकर हत्‍यायें कीं और देश को आजाद होने में तकरीबन 100 साल (1657 से 1947 तक) लगवा दिये 1 देश के ये गद्दार आज कांग्रेस की ही शान नहीं बल्कि भारत के महान व माननीय हैं , इसीलिये कांग्रेस कहती है कि आजादी की लड़ाई से उसका रिश्‍ता रहा है, हॉं सत्‍य है आजादी की लड़ाई के गद्दारों की फौज उसके पास है । अभी हाल ही में महारानी लक्ष्‍मीबाई का बलिदान दिवस 18 जून को गुजरा, आजादी की लड़ाई से रिश्‍ता बताने वाली कांग्रेस के किसी भी सिपाही को शहादत साम्राज्ञी का नाम तक स्‍मरण करने की सुध नहीं आयी , आखिर आती भी क्‍यों महारानी लक्ष्‍मीबाई का कोई वंशज कांग्रेस में नहीं है , हॉं महारानी लक्ष्‍मीबाई की शहादत जिसके कारण हुयी वह गद्दार जरूर कांग्रेस में है और माननीय एवं कांग्रेस के कर्णधार हैं । आप नहीं जानते तो बता देते हैं कि एक फर्जी रजवाड़ा ऐसा भी है जिसे महारानी लक्ष्‍मीबाई के शहादत स्‍थल पर जाने की इजाजत नहीं है । और कांग्रेस यानि आजादी की लड़ाई वाली कांग्रेस का सच्‍चा सिपाही है । मालुम है क्‍यों .......नहीं तो पता लगा लीजिये । शायद इसीलिये कांग्रेस को भारत के असल इतिहास से चिढ़ है और उसे बार बार बदलने और तोड़ने मोड़ने मरोड़ने की नौटंकी रचती रहती है । उसका वश चले तो भारत का इतिहास पूरी तरह खत्‍म ही कर डाले, यहॉं की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परम्‍परायें पूरी तरह नेस्‍तनाबूद कर डाले । भगवान राम, भगवान श्री कृष्‍ण, राजा हरिश्‍चन्‍द्र, महाराणा प्रताप सब के सब काल्‍पनिक मिथक हैं 1

हालांकि आज न राजा रहे न रजवाड़े मगर राजा रजवाड़े और राजपूत के नाम पर कई लोग ऐश फरमा रहे हैं, आज तक राज कर रहे हैं ! मौज मार रहे हैं ! अधिकांशत: इनमें फर्जी या नकली राजा हैं ! जिनका राजवंश या कुल गोत्र खानदान या रजवाई से कोई ताल्लुक नहीं रहा ! मगर आज तो जलजला ऐसे नकली राजाओं का ही है !

कुछ उपाधियां या नाम प्रतीक सामन्ती नहीं होते

अब जब बात छिड़ी है तो लगे हाथ बता दें कि कुंवर, राज, श्रीमंत आदि जैसे पूर्व नाम सम्बोधन सामन्ती नहीं हैं ! भारत के हिन्दू समाज में चाहे वह जाति से बनिया हो या चमार हो या भंगी हो या गूजर हो या ब्राह्मण हो या राजपूत हो अपने दामाद या बिटिया के पति को हमेशा ही कुंवर साहब ही कह कर संबोधित करते हैं यहॉ तक कि पूरा गॉंव ही किसी भी जाति के दामाद को कुंवर साहब ही कह कर बुलाता है या गाँव मजरे में बाहर के मेहमान को कुंवर साहब ही कहा जाता है यह एक सम्मान का श्रेष्ठ आदर देने का एक प्रतीक उल्लेख है न कि सामन्ती प्रतीक ! पता नहीं किस बेवकूफ ने कुंवर जैसे नित्य प्रयोगी शब्द को सामन्ती बता दिया ! पहले तो उस बेवकूफ को ढंग से हिन्दी सीखनी चाहिये फिर भारतीय हिन्दू समाज, संस्कार व सभ्यता को जानना चाहिये !

मेरे गाँव में एक युवक है जिसका नाम है कुमरराज या अधिक शुध्द हिन्दी में कहें तो कुंवर राज ! बेचारा गरीब किसान है सबेरे खा ले तो शाम का हिल्ला नहीं ! उसकी तो ऐसी तैसी हो गयी ! इसे तो गारण्टी से जिन्दगी में कांग्रेस में एण्ट्री नहीं मिलेगी ! भारत के गाँवों में हजारों लाखों कुअर सिंह, कुंवर सिंह, कुवरराज भरे पड़े हैं कांग्रेस के लिये ये अछूत हो गये !

श्रीमंत शब्द भी सामन्ती नहीं है भाई ! या तो आप सही हिन्दी नहीं जानते या फिर हिन्दू समाज के बारे में अ आ इ ई नहीं जानते ! हिन्दूओं में किसी को भी श्री लगा कर सम्बोधित करना बहुत पुराना रिवाज है और श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी ! श्री और मन्त को मिलाने पर बनता है श्रीमन्त अर्थात लक्ष्मीमन्त या लक्ष्मीवन्त या लक्ष्मीवान यानि अति धनाढय व्यक्ति यानि श्रीमंत बोले तो नगरसेठ !

श्रीमंत शब्द राजा या रजवाड़े का प्रतीक नहीं है बल्कि अधिक पैसे वाले का द्योतक है ! श्रीमंत शब्द ग्वालियर के सिंधिया परिवार के लिये प्रयोग किया जाता रहा है ! और जिसका साफ अर्थ है कि अति धनाढय होने के कारण इस परिवार को श्रीमंत कह कर पुकारा गया न कि राजा या सामन्ती कारणों से !

एक कहानी - नाम में क्या धरा है

एक बहुत पुरानी कहानी है, हिन्दी में है और लम्बे समय तक स्कूलों में पढ़ाई जाती रही है जिसका शीर्षक है - नाम में क्या धरा है ! कांग्रेस को इसे पढ़ना चाहिये !

साथ ही यह भी पढ़ना चाहिये -

जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान !

मोल करो तलवार का पड़ी रहन दो म्यान !!

वैसे मेरे विचार में कांग्रेस शायद कुछ और करना चाहती होगी लेकिन भटक गयी और कर कुछ और बैठी ! कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या सामन्ती प्रतीक या सामन्तीक नामोल्लेख नहीं बल्कि उसके नेताओं का सामन्ती रवैया एवं आचरण है ! उसके पास नेता कम और चमचे ज्यादा हैं ! उसके जो चन्द नेता हैं उन्हें रूआब जमाने और चमचे पालने का खासा शौक है ! कांग्रेस में टिकिट तक किसी न किसी की चमचागिरी से ही मिलता है ! और उसका नेता जो कि अपने खास व अंधे चमचे को टिकिट दिलाता है ! पॉच साल तक उसके चुन लिये जाने के बाद भी उसे नेता नहीं बनने देता बल्कि चमचा बनाये रखता है और अपने दरवाजे पर ढोक बजवाता है !

ग्वालियर चम्बल में आप जैसे ही कांग्रेस टिकिटों की बात करते हैं तो हर चुनाव में पत्रकार पहले ही अखबारों में संभावित नाम उछाल देते हैं और कांग्रेस के उम्मीदवार बता देते हैं ! क्या आप बता सकते हैं कि ऐसा कैसे होता है ! ग्वालियर चम्बल के पत्रकार इसका अधिक सटीक उत्तर दे सकते हैं, पत्रकार अपनी पैमायश का फीता योग्यता या निष्ठा या पात्रता के आधार पर नहीं बल्कि चमचागिरी के आधार पर तय करते हैं और यह जान लेना बड़ा आसान है कि कौन कितना बड़ा चमचा है ! जो जितना बड़ा चमचा उसकी दावेदारी उतनी ही अधिक मजबूत !

जो चमचा है वह नेता कैसे हो सकता है , चमचा तो सदा चमचा ही रहेगा वह नेता कभी नहीं बन सकता, इसलिये अभी तक ग्वालियर चम्बल में कांग्रेस नेता पैदा नहीं कर सकी ! चमचों को नेता बनाना एक असंभव काम है ! जो कांग्रेस से बाहर रहे वे नेता बन गये ! हाल के विधानसभा और लोकसभा चुनाव परिणाम इसका स्पष्ट जीवन्त उदाहरण हैं !

कांग्रेस को सही मायने में लोकतंत्र लाना है तो सामन्ती प्रतीक या नामोल्लेखों के पचड़े से दूर अपने नेताओं के सामन्ती आचरण व व्यवहार से छुटकारा पाना होगा, चमचे पालने वाले नेताओं को हतोत्साहित करना होगा ! चमचे हटेंगे तो नेता अपने आप आ जायेंगे ! नेता किसी का चमचा नहीं हो सकता, नेता चाहिये तो चमचे खदेड़िये ! नेताओं के सामन्ती आचरण व व्यवहार को सुधारिये ! फिर आपको जरूरत ही नहीं पड़ेगी तथाकथित नाम प्रतीक उल्लेखों को रोकने की ! चमचे ढोक बजाना बन्द कर देंगें तो कांग्रेस का खोया रूतबा लौट आयेगा ! वरना गालिब दिल बहलाने को खयाल अच्छा है !

चमचा में गुन बहुत हैं सदा राखिये संग , सदा राखिये संग, काम बहुत ही आवें!

गधा होंय बलवान प्रभु भगवान बचावे, डाके डाले पापी जम के कतल करावे !!

चरणन चाटे धूल, चमचा महान बतावे, खुद ही जावे भूल मगर सबन को गैल बतावे !!

2 comments:

  1. bahut hi umda aalekh !
    aapne atyant rochak etihasik va saamyik sandarbhon par mehnat ki hai
    aap haardik badhaai k patra hain
    BADHAAI !

    ReplyDelete