24.7.09

पुलिस है या गुंडे

शिखा शुक्ला
दैनिक जागरण,
कानपुर
शहर की सुरक्षा करने को तैनात पुलिस अगर खुद ही अपराध करने लगे तो जनता के पास क्या चारा रह जाता है. कल शाम कुछ ऐसा ही नजारा मेरे सामने था. एक युवती शायद को़चिंग क्लास से लौट रही होगी. चौराहे पर बाइक पर सवार दो पुलिस के जवानों ने उस पर फब्ब्तियाँ कसनी शुरू कर दी. बाइक से अभद्र भाषा में उससे कुछ कहते हुए वे आगे चले गये .लड़की के चहेरे से यह साफ़ नजर आ रहा था की वह स्तब्ध रह गये है. उसके साथ मुझे भी बड़ा अचरज हुआ . हमारी पुलिस इतनी नाकारा हो गये है . सहर में इतनी वारदाते होती है तब ये छुपकर बैठ जायेगे या टालू रवैया अपना लेगे पर महिलाओ के सामने इनमे बड़ी हिम्मत आ जाती है . शायद यही कारन है की लोगो को पुलिस के नाम से ही घबराहट होती है .पीठ पीछे सभी पुलिस वालों को गलिया ही देते है .

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