महंगाई से सिर्फ हम मानवों की परेशानी नहीं बढ़ी है, वरन देवता भी आजकल आधे पेट भोजन पा रहे है। अनादि काल से धरती के मनुष्य यज्ञादि पूजन द्वारा देवताओं को भोग लगाते रहें हैं। लेकिन इस महंगाई से यज्ञादि पूजन का खर्च लोगों की बजट से बाहर हो चला है. लिहाजा देवताओं को मिलने वाले आहार में कमी आ गयी है और उनकी शक्ति भी इन दिनों घटने लगी है. पर संकट में भक्त अपने इष्ट को ही याद करता है. अतः देवताओं के पास भक्तों की फरियाद पर फरियाद आ रही है. कोई जरूरी समानों के भाव कम करने की प्रार्थना करता तो कोई बढ़ती कीमतों का सामना करने के लिए इनकम बढ़ाने की याचना अपने-अपने इष्ट देव से करता. देवता इन प्रार्थना पत्रों से आजिज आ चुके थे. अंततः इस विकट समस्या के समाधान के लिए सृष्टिकर्ता ब्रह्म, पालनकर्ता विष्णु और संहारकर्ता महेश से विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया गया.
चूँकि समस्या पृथ्वी की थी अतः बैठक स्थल शिवधाम कैलाश मानसरोवर तय किया गया।नियत समय पर सभी देवता कैलाश मानसरोवर पहुंचे। मंच पर त्रिदेव विराजमान, बाकि देवता नीचे अपना कद के अनुसार उचित आसन पर बैठे थे। त्रिदेवों ने एक स्वर से पूछा 'हे इन्द्र! आखिर ऐसी कौन सी विपदा आन पड़ी है जिसका समाधान तुम्हारे पास नहीं है.' इन्द्र ने कहा 'हे त्रिदेवों! कुछ हजार साल पहले पृथ्वी पर महंगाई रुपी दुष्ट शक्ति ने पृथ्वी पर हमला कर मेरे भक्तों का बुरा हाल किया था. मेरे भक्तों की परेशानी इस कदर बढ़ गयी थी की वे अपने इष्ट की पूजन सामग्री तक नहीं खरीद पा रहे थे. हवन आदि आहारों की अनुपस्थिति में मेरी शक्ति धीरे-धीरे समाप्त होती गयी और मै अपने भक्तों की रक्षा न कर सका.' इन्द्र की आवाज में रुदन स्पष्ट झलक रहा था. इन्द्र ने करुण स्वर से कहा, 'हे महादेवों! मेरी इस गति से भक्तों का विश्वास मुझसे उठ गया और आज मेरा एक भी भक्त इस मृत्युलोक पर नहीं है. आज फिर उसी महंगाई रुपी दुष्ट शक्ति ने इस लोक के भ्रष्ट नेताओं, नकारा नौकरशाहों और रिटेल व्यापारिक घरानों के साथ मिलकर शेष बचे देवताओं को नष्ट करने का षडयंत्र रचा है.' स्थिति काफी गंभीर हो चुकी है.'तभी बृहस्पति देव उठ खड़े हुए। उन्होंने याचना भरे स्वरों में कहा 'हे महादेवों! देवराज उचित ही कह रहें हैं. हवन आहुति, फल-फूल से ही हम देवों को शक्ति मिलती है. तीन साल पहले स्थिति इतनी विकट न थी. भक्तगण मेरी कृपा प्राप्त करने के लिए मुझे पीली दाल, गुण सहित कई वस्तुओं की भोग लगाते थे. आजकल थोडा बहुत गुण तो मिल जाता, लेकिन दाल के दर्शन अति दुर्लभ हो गया है. मैंने अपने स्तर से पता लगवाया. पता चला दाल ८० रूपये किलों और गुण भी ४८ रूपए किलों बिक रहा है. जबकि तीन साल पहले ये वस्तुएं ४० रुपये और ३० रुपये किलों मिलती थी. मेरे भक्तों की थाली में भी अब दाल बड़ी मुश्किल से दिखती है. जब से चढावे में कमी आयी है तब से मुझे भी अपनी शक्ति जाती हुयी महसूस हो रही है.' यह कहते कहते वो अचेत से हो गए. तभी सभी देवताओं ने एक स्वर से त्राहिमाम-त्राहिमाम का स्वर गुंजित किया और बड़ी आस भरी निगाहों से त्रिदेवों की और देखने लगे.त्रिदेव अभी विचार करते, उससे पहले ही पुराणिक पत्रकार नारद आ गए। बड़ी संख्या में देवताओं को देख उन्होंने नारायण की और देखा और इसका औचित्य पूछा. प्रिय भक्त को देख प्रसन्न विष्णु भगवान् ने नारद को वस्तु स्थिति बताई. सहसा नारद चौंक पड़े. उन्होंने बताया की अभी वे भारत वर्ष से ही आ रहें हैं. उन्हें तो ऐसी कोई दुर्दशा नहीं दिखी. जगह-जगह मॉल बन रहे हैं, पंच सितारा होटलों में दावतों का दौर जारी है. राजनेता और नौकरशाह अपनी कुर्सी बचा लेने के बाद विदेश यात्राओं में मग्न है. मंत्रालयों के एसी चेम्बरों में तरह-तरह की विकास योजनायें बन रही हैं. वहां तो सर्वत्र भोग-विलास का वातावरण हैं.देवर्षि की विचित्र किन्तु आंशिक सत्य बातें सुनकर देवगुरु खड़े हुए। उन्होंने कहा 'हे नारद आप बिलकुल ठीक कह रहें हैं. लेकिन आप स्वयं ही बताएं इन भोगी-विलासी लोगों में से कितने लोग मानवता की राह पर चल रहे हैं? इनमें से कितने लोग सच्चे मन से हमारी पूजा करते हैं? तभी अचानक जासूस देव अपने हाथ में रिपोर्टों की एक फाइल लेकर खड़े हुए। नारद को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा " हे देवर्षि! आप स्वयं महाज्ञानी हैं. लेकिन लगता है की आप भी धरती पर सिर्फ विशेष लोगों की खबर लेने के लिए ही जाते हैं. हमारे पास गुप्त सूचना है की अधिकांश शासनाधिकारी शैतान की पूजा करते हैं. लोगों का खून चूसकर अपनी जैबे भरते हैं. और स्वर्ग की तर्ज पर प्रत्येक स्थान पर मॉल स्वर्ग बनाने की ख्वाहिश रखते हैं. आम जनता, जो हमारी पूजा सच्चे मन से करती है उसे महंगाई से मारने की साजिश इन्ही के सहयोग से रची गयी है, जिससे देवताओं को उनका यज्ञ भाग न मिले और वे कमजोर हो सके." जासूस देव की तथ्यपरक बातों से देवर्षि निरुत्तर हो गए.
तभी एक देवता ने जासूस देव से कहा " हे देव! मैंने तो सुना है की भारत देश का राजा बड़ा ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है? उसने इस स्थिति को सुधारने का प्रयत्न नहीं किया?" जासूस देव ने कहा "हे देव! सुना तो मैंने भी ऐसा ही था। लेकिन नयी जानकारी के अनुसार चुनाव जीतने के बाद बनी नयी मंत्रिपरिषद उसने लोकसभा से जिन ६४ सांसदों को मंत्री बनाया है उनकी कुल घोषित संपत्ति ही ५०० करोड़ से अधिक है। अतः उसे इस महंगाई का एहसास कैसे हो सकता है."
अभी विमर्श अपने उच्चतम सोपान पर पहुँचने ही वाला था की अचानक नंदी (भगवान शिव की सवारी) दौड़ते हुए आये। उन्होंने सूचना दी की ग्लोबल वार्मिंग से हिमालय के ग्लेसियर पिघलने लगे हैं. अब कैलाश पर रहना सुरक्षित नहीं है. शीघ्र ही निवास स्थान बदलना होगा. यह सुनते ही भगवान् शिव क्रोध से भर गए. उन्होंने राक्षसों और अपकारी शक्तियों के इस कृत्य पर भीषण गर्जना की. सभी देवता बड़ी आस भरी निगाहों से संहारकर्ता भगवान् शिव की और देखने लगे कि कब वे इन दुष्ट अपकारी शक्तियों और उनके सहयोगी भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाहों और स्वार्थी उद्योगपतियों का संहार कर उन्हें एवं उनके आम नागरिक रुपी भक्तों को राहत दिलाएंगे?
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