जिस प्रकार कोई कंपनी की सेवाएँ लेने के बदले उसे रूपये देने पड़ते हें। और पैसा न देने पर उस कंपनी के लिए उनकी भाषा में डिफॉल्टर कहा जाता हे। ठीक उसी प्रकार मनुष्य ने प्रकृति का जमकर दोहन किया। और जब प्रकृति को कुछ लोतानी की बरी आई तो मनुष्य उसका सबसे बड़ा डिफाल्टर बन गया। अपनी स्वर्थपरिता के चलते मनुष्य ने जंगलों की कटाई की ,धरती चीरकर पानी निकालकर उसे खोखला बना दिया हे। प्रकृति ने मनुष्य ने सिर्फ़ इतना चाहा की अगर मनुष्य पानी निकलता हे तो उसके एवेज में उसे रिचार्ज भी कर दिया जाए जिससे पानी की कमी न आए। अंधाधुन्द पडोकी कटाई की जा रही हे इसके बदले में कभी मनुष्य पेड़ लगाने की नही सोचता हे। यही कारण हे की मनुष्य को प्रकृति का रोद्र रूप झेलना पड़ता हे। अगर सब इसी तरह चला तो वो दिन दूर नही इस प्रथ्वी पर कुछ नही बचेगा।
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