13.7.09

क्यों करें शर्म?

(स्व।उदयन शर्मा की याद मे आयोजित एक संगोष्ठी मे कपिल सिब्बल ने कहा कि आप (मतलब पत्रकार बिरादरी) कुछ भी छापें या लिखे उससे बहुत लोगों को कोई फर्क नही पड़ता. इसके बाद एक वरिष्ट पत्रकार ने उसी कार्यक्रम मे कहा कि एक नेता हमारे यानि पत्रकारों के बीच आता है और तमाचा मार कर चला जाता है और हम शर्मिन्दा होने सिवा कुछ भी नही कर सकते.)

मुझे नही लगता कि कपिल सिब्बल ने कोई ऐसी बात कह दी जो नही कहनी चाहिए. सही तो है, हम ने इस बात के लिए लिखना और बोलना कब का छोड दिया है कि किसी को फर्क पडे, समाज मे कोई परिवर्तन आए. आज का पत्रकार खोखला हो चुका है उसके कलम की धार सिक्कों की खनक से तय होती है और जब हमने पैसो के लिए ही लिखना शुरु कर दिया है तो क्यों किसी को हमारी लेखनी से फर्क पडेगा.

आज यह बात एक नेता ने सामने आकर कह दी है तो शर्मिन्दगी महसूस हो रही है, गुस्सा आ रहा है. क्यों भाई?ऐसा क्या हो गया कि आज पत्रकार बिरदरी को शर्मिन्दगी हो रही है. जब हम इन नेताओं से गिफ्ट लेते हैं, पैरवी करवाते हैं और खबर छापने के लिए पैसे मांगते हैं तब तो शर्म नही आती.

हमे शर्मशार होने की बिल्कुल जरुरत नही है और न ही पत्रकारिता के गिरते स्वरुप पर घरियालू आंसू बहाने की जरुरत है। जरुरत है तो अपने आप को इस तरह के ब्यानो के लिए तैयार करने की क्यों कि ये तो केवल बानगी थी, आगे तो अभी बहुत कुछ सुनना और देखना बाकि है.

तो फिर चलिए उस सेमिनार और उस फालतू बात से बाहर आएं और अपने दूकान को नए रुप मे सजांए, कुछ माल कमाएं क्योंकि आगे आपके पैसे ही आपका साथ देंगे!!!

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