वंशी की मधुरिम तानें
है कौन छेड़ता मन में ?
कुछ स्नेह-सुधा बरसता
है कौन व्यष्टि के मन में ?
रे कौन चमक जाता है,
निर्भय सूखे सावन में।
सागर का खारा पानी ,
अमृत बन जाता घन में॥
किसमें ऐसी गति है जो,
सबमें गतिमयता भरता।
मानव-मानस दर्पण में,
है कौन अल्च्छित रहता ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"
No comments:
Post a Comment