है स्वतन्त्र जीव जगती का ,
बस स्वारथ से अनुशासित।
शाश्वत है सत्य यही है,
जीवन इससे अनुप्राणित ॥
आहत है सभी दिशायें,
आहत धरती, जल, प्लावन ।
है व्योम इसी से आहत,
आहत है रवि शशि उडगन ॥
शिशु अश्रु बेंचती है यह ,
ममता , विनाशती बंधन।
निर्धन का सब हर लेती,
करती अर्थी पर नर्तन ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
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