व्याकुल उद्वेलित लहरें,
पूर्णिमा -
उदधि आलिंगन ।आवृति नैराश्य विवशता ,
छायानट का सम्मोहन ॥जगती तेरा सम्मोहन,
युग-
युग की व्यथा पुरानी।यामिनी सिसकती -
काया,
सविता की आस पुरानी।योवन की मधुशाला में,
बाला है पीने वाले।चिंतन है यही बताता ,
साथी है खाली प्याले ॥डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल '
राही'
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