अरविन्द शर्मा
हमारे यहां यह कहावत लंबे समय से चली आ रही है, 'मेरी पड़ोसन खाय दही, मोसे कैसे जाय सही'। ऐसी खबर पिछले दिनों मैंने अखबार में पढ़ी तो बचपन से चौबीस तक की जिंदगी सिनेमा की रील की तरह आंखों के सामने से गुजर गई। दिमाग ने कहा कि नहीं इस बात पर यकीन करना बेमानी है, लेकिन क्या करें यह कमबख्त दिल है की मानता ही नहीं, चाहे कोई कितना भी समझाए।
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