24.8.09
भडास तो निकलनी ही चाहिए.....
अपने यहाँ अपने एक दोस्त हैं। अपने रंग की तरह ही उनके तकरीबन सारे कारनामे भी काले हैं। उनका सिर्फ़ एक ही काम है, दफ्तर मे कुर्सी पे कुर्सी रखकर दूसरों को कैसे परेशान किया जाए, इसकी साजिश रचना। काफ़ी नाम है उनका आस पास के एक दो कोस मे। लेकिन मजाल है कभी दफ्तर से बाहर निकले हों। आदमी उनके सेट हैं जो सीधे दफ्तर मे ही उनसे मुलाकात करते हैं। बाहर निकलने मे उनकी इतनी फटती है की जैसे अभी बाहर के लोग उन्हें खा जायेंगे। लेकिन दफ्तार्बाजी मे एक नंबर। कौन कहा जा रा है, कहाँ से आ रहा है, इसकी जानकारी उन्हें खूब रहती है और उसे ऊपर तक पहुचाने के लिए वो हमेशा कृतसंकल्प रहते हैं। कोई अगर अपनी जगह शान्ति से काम करना चाहे, ये उन्हें और उनकी अंतर आत्मा को कटाई बर्दाश्त नही। आख़िर बगैर उनके चाहे कैसे कोई शान्ति से काम कर ले रहा है, कैसे कम्पनी उसके चाहे बगैर उसे कम्पनी मे रखे हुए है। मेरे ख्याल से ये सभी दफ्तरों का हाल है....आपके दफ्तर का क्या हाल है ?
राहुल भाई उन सज्जन के हाथ-पाऊं जोड़ कर ये कला सीख लीजिये.... बहोत तरक्की करेंगे...!!!
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जयंत जी, इस मामले मे मैं यक़ीनन उन्हे गुरु मानता हूं, लेकिन कई महीनो तक उनकी शागिर्दी के बाद भी नही सीख पाया, अफ़सोस, मैं उनकी क्लास से निकाला जा चुका हू...
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