3.8.09

निराशा के घुप्प से बाहर आने की भाजपा की कवायद

निराशा के घुप्प से बाहर आने की भाजपा की कवायद
राजेन्द्र जोशी
देहरादून । पूर्व मुख्यमंत्री खंण्डूरी की अलोकप्रियता के कारण लोक सभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद अब भाजपा निराशा के अंधेरे से बाहर आने के लिए छटपटा रही है यही कारण है कि भाजपा के नेताओं को अब प्रदेश के नये मुख्यमंत्री निशंक को ही खेवनहार मानने को मजबूर होना पड़ा है, अधिकांश भाजपा नेताओं का कहना है कि अब उनकी ही अगुवायी में भाजपा विकासनगर उपचुनाव करा किला फतह कर पायेगी।
बैठक में हालांकि लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के कारणों को भी कार्यकारिणी बैठक के केन्द्र बिन्दु में रखा गया था लेकिन यह खुलकर कहने का साहस किसी भी नेता में दिखाई नहीं दिया कि वे आखिर क्यों हारे। हां हार के कारणों को घुमा फिरा कर कहने वालों की कमी इस बैठक में नहीं थी लेकिन हार के लिए जिम्मेदार माने जा रहे पूर्व मुख्यमंंत्री खंण्डूरी इस बैठक में आये तो जरूर लेकिन वे पार्टी के कार्यकर्ताओं तथा नेताओं की आंखों से आंख नहीं मिला पाये और बैठक का सामना तक नहीं कर पाये और मात्र दो घंटे बैठने के बाद सरक लिए। बैठक में पांच लाख लोगों को प्रदेश भर में सदस्य बनाने का जो लक्ष्य भाजपा के कुछ हवाई नेताओं द्वारा रखा गया था उसकी भी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने बैठक में तो खिलाफत नहीं की लेकिन बैठक के बाद बाहर आने पर जरूर दबे स्वरों में इसका विरोध किया इन नेताओं का तर्क था कि जब राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा ने भी मात्र तीन फीसदी ही नयी सदस्यता का लक्ष्य रखा है तो ऐसे में प्रदेश में पांच फीसदी लक्ष्य रखने का क्या औचित्य? भाजपा के कई नेताओं ने प्रदेश सह प्रभारी अनिल जैन द्वारा दिये गये इस लक्ष्य को हवाई नेता का हवाई लक्ष्य करार दिया।
सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बनाये रखने की जो कवायद की बात बैठक में कही गयी उससे इस बात की पुष्टि होती है कि भाजपाईयों प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में यह जरूर मान लिया है कि हार उसके आपसी मतभेदों के कारण ही हुई। राज्य में ढाई साल तक चले नेतृत्व परिवर्तन के ड्रामे से भाजपा को जो नुकसान हुआ उससे यहां जुटे सभी नेता आंखे चुराते ही नजर आये। डेढ़ माह पूर्व दिल्ली में नेतृत्व परिवर्तन के बाद पहलीबार आमने-सामने हुए इन नेताओं के चेहरों पर अभी अपनी-अपनी हार-जीत, तथा खोने-पाने के गम व खुशी की लकीरें साफ खिंची हुई दिखाई दी। कहीं नजरें चुराना तो कहीं द्वीअर्थी बातें व हंसी अब भी यही संकेत दे रही थी कि यह नेता कह कुछ रहे हैं और इनके अंदर चल कुछ और रहा है। यह जरूर साफ दिख रहा था कि अब जो इन नेताओं के जेहन के भीतर चल रहा है वह बाहर नहीं दिखायी दे सकता है। क्यों बीते समय में वह बाहर आने सभी सीमाओं को तोड़ चुके हंैं।
अब उन्हें पार्टी में एक जुटता की बात करनी ही पड़ेगी यही कारण है कि कार्यकारिणी की बैठक में सबसे ज्यादा जोर अपने घर को मजबूत बनाने पर दिया जा रहा है वहीं दूसरी ओर इस हार के पीछे भाजपा का रक्षात्मक और कांग्रेस का हमलावर रवैया भी रहा है। अब भाजपा अपनी इस शैली को बदलकर हमलावर रूख अपनायेगी।
बैठक में आये अधिकांश लोगों का मानना था कि भाजपा के दिग्गज नेताओं की लड़ाई में पार्टी को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कैसे की जाए तथा आपसी मतभेदों को किस तरह दूर किया जाए इस पर गंभीरता से विचार किये जाने की भी जरूरत महसूस की गयी। इनका मानना था कि नेतृत्व परिवर्तन की जंग में अगर पार्टी के साथ-साथ किसी नेता का नुकसान हुआ है तो उसमें भुवन चन्द्र खण्डूड़ी ही प्रमुख हैं। जिनकी छवि को भी नुकसान हुआ है। वहीं पार्टी के कई कद्दावर नेताओं का यह भी मानना था कि यदि केन्द्र द्वारा प्रदेश में नियुक्त प्रभारियों द्वारा प्रदेश की सही तस्वीर पहले ही केन्द्रीय नेताओं के सामने रखी होती तो भाजपा को लोकसभा चुनाव में ऐसी हार का मुंह नहीं देखना पड़ता। भाजपा नेताओं क ा तो कहना था कि इन प्रभारियों में से सह प्रभारी ने तो बीते ढ़ाई साल तक प्रदेश सरकार से अपना उल्लू सीधा ही किया लेकिन भाजपा को कैसे जोडक़र रखा जाय इस पर तनिक भी नहीं सोचा तभी तो पार्टी की यह हालत हुई है।

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