19.8.09
एक पैगाम !
राजेश त्रिपाठी
एक पैगाम
नर्म बिस्तरों पर
रातें गुजारनेवालों को नाम।
वे जो मुफलिसों की
तबाही पर घड़ियाली आंसू बहाते हैं
वे जो आश्वासन देकर रह जाते हैं
एक दिन ऐसा भी आयेगा
जिस दिन
उनकी अस्तिमता को पक्षाघात
लग जायेगा
छीज जायेंगी
उनकी ताकतें
होंगे निरस्त्र
वह दिन मुफलिसों का दिन
उस दिन
फुटपाथों से लेकर
राजपथ तक
एक नया नजारा होगा
सीलनभरी झोंपड़ियों
गंदे फुटपाथों पर पड़ी
बेजान-सी जिंदगियों में
लौट आयेगी जान
उठ जायेंगे हाथ
चीख पड़ेंगे
बरसों से सताये लोग
भिंच जायेंगी मुट्ठियां
अपने नये आत्मविश्वास के साथ
पूछेंगे भूख-गरीबी से बिलबिलाते लोग
कहां हैं हमारे हिस्से की रोटियां
जिन पर तुम सब पका रहे
राजनीति की गोटियां
याद रखो एक दिन
सब्र का बांध टूट जायेगा
बरसों से अंतर में उबलता
ज्वालामुखी फूट जायेगा
अनाचार का आवरण जल जायेगा़
अंधेरे आवासों में आशा का
दीप जगमगायेगा
वह दिन नयी आजादी का दिन
हर आमो-खास का दिन होगा
वह दिन सबका अपना होगा।
ye sthiti bhi dukhad hai
ReplyDeletevoh bhi dukhad hogi
na ye honaa chaahiye
na voh hona chahiye
raah kuchh aisee nikle ki sab ko chain mile
shram karne ko din mile, nind bhari rain mile
aapki kavita umdaa hai
badhaai
bahut bahut badhai !
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
ReplyDeleteरचना गौड़ ‘भारती’
बहुत अच्छा लिखा है ढेर सारी बधाईयाँ एवँ शुभकामनाएँ!!!
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