3.8.09

'सच का सामना' के पैरोकार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दलाल हैं

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
बेहद बेहुदा और अश्लील रियलिटी शो 'सच का सामना' में करोड़ों लोगों के सामने आदमी की बहुत ही निजि समझी जाने वाली चीज सैक्स के बारे में ऐसे-ऐसे सवाल किए जा रहे हैं कि आंखें शर्म से पानी-पानी हो जाती हैं। यह तो पूछा ही जाने लगा है कि क्या आपने अपनी साली के साथ सम्बन्ध बनाए हैं या सम्बन्ध बनाने की सोची है ? हो सकता है कल यह भी पूछा जाए कि क्या आपने कभी अपनी बेटी भतीजी या भांजी के साथ भी जिस्मानी सम्बन्ध बनाए है ? 'सच का सामना' की पैरोकारी करने वालों से सवाल किया जा सकता है कि क्या केवल सैक्स के बारे में सच बोलने से ही आदमी हिम्मत वाला हो जाता है ? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुदरत ने हमें अभिव्यक्ति के लिए जबान दी है तो सोचने के लिए दिमाग दिया है। सामने वाले इंसान के बारे में दूसरा इंसान क्या सोच रहा है, इसका पता सामने वाले इंसान को नहीं चलता। जरा कल्पना कीजिए कि यदि ऐसा होता कि एक इंसान दूसरे इंसान के दिमाग को पढ़ने की क्षमता रखता तो क्या स्थिति होती ? कुदरत ने हमें जैसा बनाया है, वह सर्वोत्तम है। बहुत पहले दूरदर्शन पर सीरियल आया था। जिसमें एक बहुत सुखी परिवार दिखया गया था। परिवार के लोग घर के मुखिया की सब बातों का पालन करते थे। एक दिन घर के मुखिया को एक जादुई चश्मा हाथ लग जाता है। उस चश्मे को लगाकर घर के मुखिया में सामने वाले के विचारों को पढ़ने की शक्ति आ आ जाती थी। उस चश्मे की वजह से उसकी और परिवार की जिन्दगी नरक बन जाती है। उस सीरियल से यह सबक मिला था कि सच हमेशा अच्डा ही नहीं होता। कभी-कभी सच को छिपाकर विकट स्थितियों से बचा जा सकता है। यदि किसी सच से बेकसूर इंसानों की जान जाने का खतरा हो तो उस सच को छिपाना ही बेहतर होता है।
'सच का सामना' जैसे रियलिटी शो सच बुलवाकर इंसानों की जिन्दगी नरक बना रहा है। सचिन तेंदुलकर और विनोद काम्बली की दोस्ती में कथित दरार सच बोलने से ही आयी है। हर इंसान की अपनी पर्सनल लाइफ होती है। सैक्स भी उसकी पर्सनल लाइफ है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि सैक्स इंसान की अहम जरुरत है। इस जरुरत को आदमी पर्दे में रहकर ही पूरी करता है। क्या 'सच का सामना' के पैरोकार यह भी चाहते हैं कि पर्दे में किए जाने वाले कार्य भी सार्वजनिक रुप से किए जाएं ? सच तो यह भी है कि इंसान इस दुनिया में नंगा ही आता है। क्या आदमी को नंगा ही रहना चाहिए, क्योंकि सच तो यही है ? अब 'सच का सामना' के पैरोकार यह दलील देने की कोशिश नहीं करें कि सभ्य समाज आदमी को नंगा रहने की इजाजत नहीं देता। इसी तर्क पर यह भी कहा जा सकता है कि सभ्य समाज अपने सैक्स सम्बन्धों को सार्वजनिक करने की इजाजत भी नहीं देता।
'सच का सामना' जैसे रियलिटी शो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की देश की युवा पीढ़ी को भटकाने और गुमराह करने की साजिश के अलावा कुछ नहीं है और जो लोग इस शो की पैरवी कर रह हैं, वे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दलाल हैं। दरअसल, देश की जनता को सिर्फ और सिर्फ सैक्स के बारे में ही सोचने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जब से निजी चैनलों का प्रसार बढ़ा है, तब से देश की जनता को सैक्स रुपी धीमा जहर दिया जा रहा है। यह जहर पीते-पीते एक पीढ़ी जवान हो गयी है। इस पीढ़ी में यह जहर इतना भर चुका है कि एक तरह से अराजकता की स्थिति हो गयी है। मां-बाप को हमेशा डर सताता रहता है कि पता नहीं कब बेटी घर से भागकर शादी कर ले या बेटा एक दिन आकर कहे कि 'मां ये आपकी बहु है, इसे आशीर्वाद दीजिए।' मां-बाप शर्मिंदा हो रहे है। युवा पीढ़ी अपनी सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं की परवाह न करते हुए प्रेम की पींगें बढ़ा रहे रही हे। 'ऑनर किलिंग' और प्रेम में जान देने या लेने की घटनाएं खतरनाक हद तक बढ़ रही हैं। मीडिया कह रहा है कि समाज प्यार का दुश्मन हो गया है। लेकिन मीडिया यह क्यों नहीं सोचता कि दिल्ली, चंडीगढ़, मुबंई और बंगलौर जैसे शहर पूरा हिन्दुस्तान नहीं है। देश की अस्सी प्रतिशत आबादी गांव, कस्बों और मंझोले शहरों में रहती है, जहां का समाज अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि प्रेम विवाह और वह भी अन्तरजातीय और अन्तरधार्मिक विवाह को मान्यता दे। हां, मीडिया ने गांव-गांव और गली-गली में यह संदेश जरुर पहुंचा दिया है कि आप खुलकर प्यार करिए हम आपके साथ हैं।
हिन्दुस्तान को कई तरह के विदेशी कचरे को डम्प करने का ठिकाना बना दिया गया है। 'सच का सामना' जैसे रियलिटी शो भी ऐसा ही विदेशी कचरा है। इस कचरे को बेचकर कुछ लोग पैसे से अपनी झोली भर रहे हैं। हमारी सरकार कुछ करती नजर नहीं आती। संसद में सच का समाना को लेकर चर्चा तो जरुर हुई, लेकिन लगता है कि सरकार भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सामने बेबस और लाचार है।

2 comments:

  1. "'सच का सामना' के पैरोकार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दलाल हैं"
    apke leikh se mujhe apati hai...
    mai ek aam insan hun or nahi mejhe kisi kampani se ki paisa mila hai...

    mujh jaise bahuto mil jayege apko subah sabere kii bheed me lekin mujhe ye batalne me koi jhijhak nahi hai ki mai sho ko pasnd karata hun..

    ReplyDelete
  2. sach ka samnaa....
    aapka lekh dkdam sahi hai,is vishay par tensionpoint.blogspot.com par bhi padhen. ek baat aur vikas ne jo tippani kari hai uske vishay me yahi kahunga ki kayi praniyon ko gandagi pasand hoti balki unka svabhav hota hai gandagi khana to unhen saf naliyon me vah gandagi nahin mil paati ,uske liye vah kudedaanon ya gande naalon me jaate hain vahan gandagi failate bhi hain khate bhi hain.

    ReplyDelete