25.9.09
जनता चाहे तो राजा, न चाहे तो रंक
भारतीय लोकतंत्र में जनता किसे अभिनेता और किसे विलेन बना दे ,कोई नही जानता । लोक (जनता का बिखरा समूह )+तंत्र से लोकतंत्र का निर्माण हुआ है ,जिसमे सारे अधिकार जनता के पास सुरछित होते है ।मै यहाँ लोकतंत्र की परिभाषा बताने नही आया हूँ । मेरे चर्चा का विषय हाल ही में हुए विधानसभा उपचुनाव है और मै सर्वप्रथम बिहार उपचुनाव पर चर्चा करना चाहता हूँ इसके पीछे भी एक तर्क है की राजनितिक द्रिस्त्री से बिहार को बदलाव की भूमि माना जाता है । आज चर्चा में पुनःबिहार उपचुनाव है ,इस चुनाव में नीतिश संचालित राजग ने अठारह सीटो में मात्र पॉँच ही जित पाएजिसमे जनतादल ने तीन सीट और भाजपा ने दो सीटेही बचा पाई वही मुख्य विरोधी दल राजद और रामविलाश की लोजपा ने नौ सीटो परकब्जा जमा कर अपने खोई ताकत में थोरी सी इजाफा की और अपने आलोचकों को करा जवाब दिया की जब तक रहेगा समोसे में आलू तब बिहार में रहेगा लालू । धयान देने वाली बात है की जाने माने विचारको ने भाविस्यवानी की थी की लालू का सूर्य अस्तहो गया है और अब बिहार में नीतिश सालो राज करेंगे परन्तु जनता का वोट राजद को मिला और लालू रामविलाश को खोई जमीं तलासने का एक साल का समय मिला है जिसे लालू हाथ से नही जाने नही देना चाहते है । इस चुनाव ने राजनीतिको को सकते में डालदिया है जहाँ तक मेरे विचार का प्रश्न है तो सिर्फ़ अठारह सीटो से सारे बिहार के मतदाताओ की मानसिकता का अंदाजा लगना कठिन है । नीतिश कुमार जब बिहार की गद्दी पर बैठे थे तो बिहार की जनता को लगा था की वह जाती -पाती की राजनीती नही करेंगे परन्तु कुछ ही दिनों में नीतिश कुमर ने बिहार में बुझ चुकी जातिये राजनीती की हवा महादलित का नारा दे कर कर दिया ,जिसके परिणामस्वरूप नीतिश सर्वजन के नेता से अलापजन के नेता बन कर उभरे .उन्होंने महादलित वर्ग से दुसाध और चमार जाती को अलग कर दिया ,इसके पीछे भी एक राज है की दलित के नम पर मिलने वाले मलाई को यही दो जाती के लोग खा जाते थे जिसके लिए नीतिश कुमार को महादलित वर्ग का गठन करना परा और इसका खामियाजा भी नीतिश कुमार को विधानसभा चुनाव में झेलना परा क्योकि दुसाध पासवान के साथ हो लिया और चमार मायावती के साथ हो गया । यहाँ विकास पीछे छुट गया और जातीयता आगे आ गया । कभी ओक्सिग्जें का कम करने वाले संस्कृत टीचरों और मदरसा टीचरों का एक बार वर्ग भी नीतिश से नाराज दिख रहा है क्योकि १९९० में गठित टीचरों को लालू ने वेतन देने से इंकार कर दिया था और चंद्रशेखर के काल में उन्हें जेल में डाल दिया गया था और उस time mukhayamantri the lalu . lalu ne is andolan ko kuchalne ka bahut koshish kiya paranu yeh varga kangres ke patan ke bad rajag ke sath ho liya tha parantu sarakar ke char sal bitne ke bad bhi un ticharo ko avaitnik hi rakha gaya jiska asar bhi is chunav me dekhne ko mila aur sath hi use rajag ke vikalpa ke roop me kongres ka sath mila halanki puri tarh iska palayan konges ke tarf nahi hua hai parantu kam pratishat voting hone se is thore vote ka bhi asar chunav me nitish kumar ke khilaf gaya .vahi dusri taraf delhi me kongesh ko mahngai ne duba diya jiske karan parti okhala aur dwarka dono sit har gayi .okhala me rajad aur dwaraka me bhajpa ne pataka fahraya .is vidhansabha chunav ko dekh kar pata chalta hai ki janta ke voterupi uant kis karvat baithati hai koi nahi janta .ab is formula ko maharastra roopi prashna ka jabab bhi dhundhana hai.
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